________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी का जाव नियमा सबलोग फुलंति, एवं दोनिवि // 19 // संगहस्त आणुपन्वी दवाणं कालतो केवञ्चिरं होइ ? नियमा सम्बद्धा एवं दोन्निवि // 50 // संगहस्स आणुपुव्वी दव्वाणं कालतो केवच्चिरं अंगरं होति ? नथि अंतरं, एवं दोन्निवि // 5 // // संगहस्स आणुपुब्धी दव्याई सेस दव्याणं कइ भागे होजा ? किं संखनइ भागे होजा, असंखेजइ भागे होज्जा, संखेजेसु भा.सु होजा, असंखेजेसु भागेसु होजा ? नो संखेनइ भागे होजा, नो असंखेजइ भागे होजा, नो E असंख्यातवे भाग को नहीं पता है परंतु सब लोकको स्पर्शता है. ऐसे ही अनानपूर्वी व अवक्तव्यका कहना // 44 // काल द्वार-संग्रामय के मासे अ.नुपू द्रव्य कितने काल रहता है ? अहो शिप्य ! नियमा से सदैव पाता है. ऐसे ही अनानुव अपकव्य द्रव्य का कहना // 50 // अंतर द्वार-अो भगवन् ! संग्रह नय की अपेक्षा पूर्वी द्रव्य का काल से कितना अंतर कहा है ? अहो शिष्य ! इस का अंतर नहीं है. ऐसे ही अनानुव अवक्तव्य का करना / / 51 // भाग द्वार-ही भगवन् ! संग्रह नय से आनपूर्वी द्रव्य शेप द्रव्य में कितने भाग में होते हैं? क्या संख्यात भाग में, असंख्यात 'भाग में, संख्यातवे भाग में, या असंख्यातवे भाग में, होये ? अशिष्य ! उक्त चारों भांगे नहीं पाते प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालानसादजी* For Private and Personal Use Only