________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुवादकपाल ब्रह्मचारीमुनि श्री अमोहक पापिनी पुन्बीदव्वेहिं समायरंति नो अवत्तचग दबेहिं समोयरंति, एवं तिण्णिविसटाणे समोयरंति से तं समोयारे // 14 // से किं तं अणुगमे ? अणुगमे अट्ठविहे पणते तंजहा-संतपय परुवणया, दव्वपमाणंच खित्त फुसणाय, कालोय अंतरं,भाग भावे, अप्पाबहुं नत्थि // 1 // 45 // संगहस्स आणुपुब्बी दवाई किं अस्थि नत्थि ? नियमा अस्थि, एवं दोन्नि वि ॥४६॥संगहस्स आणुपुवी दवाई किं संखिजाई,असंखिजाइं अणंताई?नो संखजाइं नो असंखेनाई नो अणंताई. नियमा मत से आनुपूर्वी द्रव्य आनपूर्ती में समवतरते हैं यों शेष दो द्रव्य अपने 2 स्थान में मप्रवतरते हैं. यह समवन र हुवा // 45 // अहो भगवन् ! अनुगम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अनुगप के आठ प्रकार कह हैं. तद्यथा-१ सत्पद प्ररूपना, 2 द्रव्य प्रमाण, क्षेत्र, 4 स्पर्शन. 5 काल. 3 अंतर. 7 भांगा और 8 भाव. इस में अल्पाबहत्व द्वार नहीं है क्यों कि संग्रह नय में अनेक का अभाव है // 46 // प्रथम सत्पद प्ररूपना द्वार-अहो भगवन् ! संग्रह नय के मत से आनद्रव्य की क्या अस्ति है या नास्ति है! अहो शिष्य ! नियमा से सदैव अस्ति है परंतु नास्ति नहीं है एंस ही अनानुपूर्वी व अवक्तव्य का कहना // 46 / / संख्या प्रमाण द्वार-संग्रह नय के मत से आनी द्रव्य क्या संख्यात है. संख्यात है या अनंत है ? अहो शिष्य ! संख्यात, असंख्यात व अनंत नहीं है परंतु नियमा एक प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहावजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only