________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिना. में अनुवादक बाल त्तणया ? संग्रहस्स भंग समुक्तित्तणया-१ अत्थि आणुपुव्वी 2 अस्थि अणाणुपुब्बी 3 अत्थि अवत्तव्वए, अहवा 4 अत्थि आणुपुत्वीय, अणाणुपुवीय. 5 अहवा आणपव्वीएय अवत्तव्वएय, 6 अहवा अस्थि अणाणपव्वीय अवत्तव्वएय, 7 अहवा अस्थि आणुपुज्वीय, अणाणपुवीय, अवत्तव्बएय. एवं सत्तभंगा, से तं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया // 42 // एयाएणं संगहस्स भंग समुक्त्तिणयाए किं पायणं ? एयाणं संगहस्स भंग समुक्त्तिणयाए संगहास भंगोबदसणया कीरइ // 43 // से किं तं संगहस्स भंगोवदसणया ? संगहस्स भंगोवदंसणया तिपएसिया आणुपुब्बी शिष्य ! संग्रह नय से भंग समुत्कीर्तन के सात भंग होते हैं. एक संयोगी भांगे तीन 1 आनुपूर्वी 2 अणाणुपूर्वी व 3 अपक्तव्य द्विसंयोगी तीन भंग-अनुपूर्वी अनानुपूर्ती, आनुपूर्वी अवक्तव्य, 1 और 3 अनानपूर्वी अवक्तव्य. तीन संयोगी भांगा एक आनुपूर्वी अनानपूर्वी अवक्तव्य. यो सात भांगे / हुवे. यह संग्रह नए एकार्थवाची होने से इस का अनेक वचन नहीं ग्रहण किया है // 42 // अहो मगवन् ! मंग्रह नय के रात से मंग सम्स्कीर्तन करने का क्या प्रयोजन है ? अहो शिष्य ! संग्रह नय की भंग समुत्कीर्तन से भंगोपदर्शन किया जाता है // 43 // अहो भगवन् ! संग्रह नय से भंगोपन दर्शन किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! संग्रह नय से भंगोपदर्शन निम्नोक्त प्रकार किये जाते हैं.।। प्रकाशक-राजावादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only