________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ A8एकाश तम-अनुयोगद्वार सूत्र पतुर्थ 488 एगोरासी, एवं दोनिवि, // 47 // सगहस्स आणुपुञ्बी दबाई लोगस्स क भाग होजा ? किं संखेजइ भागे होजा. असंखेजइ भागे होज्जा, संखेजेसु भागे होजा, असंखेजेसु भागेसु होजा, सबलोए होजा ? नो संखेजइ भागे होजा नो असंखेजइ भागे होज्जा, ना संखजेल नागेतु होजा, नो असंखेनेसु भागेसु होजा, नियमा सव्वलोए होजा, एवं दोन्निवि // 48 // संगहस्स आणुपुब्बी दवाइं लोगस्स किं संवेजइ भागं फसंति असंखेजइ भागं फुसति, संखिजेसु भागे फुसति, असंखिज्जेसु भागे फुसंति, सव्वलो फुसति ? नो संखेजइ भागं फुसंति, राशि है क्यों कि संग्रह नयबाला द्रव्य को अभेद पानता है. ऐसे ही अनानपूर्वी व अवक्तव्य का कहना // 47 // तीसरा भाग द्वार-अहो भगवन ! आनद्रव्य लोक के कितने भाग में हैं / क्या संख्यात भाग में, असंख्यात भाग में, संख्यातये भाग में, असंख्यातने भाग में या सब लोक में 2 अहो शिष्य ! संख्यात, असंख्यात, संख्यातो, असंख्यातवे भाग में नहीं है परंतु सब लोक में है। ऐसे ही अनानुपूर्ण व अवक्तव्य का म हना // 48 // स्वर्शना द्वार---अहो भगवन् ! आनुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्यात भाग को क्या स्पर्शत है. असंख्यात भाग को स्पर्शता है. संख्यातवे भाग को स्पर्शता 3 असंख्यासवे भाग को स्पर्शना है या सत्रलोकको सता है? अहो शिव्या झोक के संख्यात,असंख्यात,संख्यातयेव / 1 | 4887 अनुपविधि का द्रव्यानुपूर्वी 8.. अर्थ For Private and Personal Use Only