________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असंखजगुणाई ताई चेव पएसट्टयाए अणंतगुणाई, सेतं अणुगमे से तं नेगम ववहाराणं अणोवणिहिया दव्वाणुपुवी // 38 // से किं तं सगहस्स अणोवणिहिया दवाणुपुवी ? संगहस्स अणोवणिहिया दवाणुपुवी पंचविहा पण्णत्ता तंजहा अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + द्रव्य आश्री असंख्यात गुना, उस से आनुपूर्वी द्रव्य प्रदेश आश्री अनंत गुना यह नव द्वार अनुगमका हुवा. यह अनोपनिधि का द्रव्यानुपूर्वी का कथन हुवा. // 38 // अहो भगवन् ! संग्रह नय के मत से अनुपनिधिक द्रव्यानुपर्छ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! संग्रह नय के मत से अनुपनिधिक द्रव्यानु .प्रकाशक राजाविहादुर लाला सुखदवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी. * भगवती शतक 25 उद्देशा 4 तथा पन्नबणाजी में प्रदेश से अनंत प्रदेशिक स्कंध के प्रदेश कमी कहे. परमाणु प्रदेश से अनंत गुने कह, संख्यात प्रदेशिक स्कंध के प्रदेश संख्यात गुने असंख्यात प्रदेशिक स्कंध. के असंख्यात गुने, E} और यहां द्विप्रेशिक स्कंध से अनंत प्रदेशिक स्कंध के प्रदेश एक अनंत गुने कहे, आनुपूर्वी द्रव्य स्कंध के प्रदेश अनंत / गने कहे. यह कैसे मिले ? उत्तर भगवती मे तो संख्यात प्रदेशी स्कंध, असंख्यात प्रदेशी स्कंध व अनंत प्रदेशिक इन तीन तीन स्कंध के प्रदेश अलग 2 कहे हैं. इस से अनंत गुने नहीं हैं, और यहां तो संख्यात प्रदेशिक स्कंध असंख्यात प्रदेशिक स्कंध व अनंत प्रदेशिक स्कंघ इन तीनों को एकत्रित भालाकर आनुपूर्वी कही है इस से तीनों के प्रदेश एकत्र होने से अनंत होते हैं. नेसे देवी से तीर्यचनी असंख्यात गुनी कही और 98 बोल की अल्पाबहुत्व में अलग 2 गिनती के स्थान संख्यात गुनी कही. For Private and Personal Use Only