________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र -101 अनुवादक वरल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी असंखेजेसु भागेसु होजा ? नो संखेजइ म.गे होजा. असंखेजइ भागेसु होजा नो संखेजेसु नो असंखेज्जेसु भागेसु होजा / एवं अवत्तव्वग दव्वाणिवि भाणियव्वाणि // 36 // गेगम ववहाराणं आणुपुवी दव्वाइं कतरमि भावे होज्जा ? किं उदइए भावे होजा, उवसमिए भाबे होजा, खडए भाव होजा, खओवसमिए भावे होज्जा, पारिणामिए भावे होजा, सन्निवाइय भावे होज्जा ? नियमा साइपारिणामिए भावे होजा, अणा णुपुव्वी दव्वाणि अव सव्वग ६वाणिय एवं चेव भाणियवाणि / / 37 // एएसिणं भंते!णेगम ववहाराणं आणुपुब्बी दव्याण अणाणुपुब्बी दवाणं अवत्तव्यग दव्वाणय दवट्ठ भाग में, असंख्यात भाग संख्यातवे भाग में व असंख्यातवे भाग में होवे ? अहो शिष्य ! मात्र असंख्यात भाग में होने शेष भागों में हो नहीं. ऐसे ही अवक्तव्य पद का कहना // 36 // आठवा भाव द्वार-नैगम व्यवहार नय के यत से आनपूर्वी द्रव्य किनने भाव में होवे ? क्या उदयिक भाव में, औपशमिक भाव में, क्षायिक भव में. क्षयोपशमिक भाव में, पारिगामिक भाव में या सनिपातिक भाव में होवे ? अहो शिष्य ! मात्र नियमा से सादि पारिणाषिक भाव में होवे. शेष भाव में होवे नहीं. ऐसे ही अनानुपूर्वी व अवक्तव्य का कहना // 7 // नववा अल्पाबहत्व द्वार-अहो भगवन् ! नैगम व्यवहार 8 नय के मत से आनुपूर्वी, अनान व अवकव्य द्रव्य में द्रव्य से प्रदेश से व द्रव्यप्रदेश से कान *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only