________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - 4.9 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी होइ ? एगं दव्वं पडुच्च-जहणणं एगं समयं उक्कोसेणं असंखेज कालं / णाणा दव्वाइं पडुच्च णियमा सबहा / अणाणुपुव्वी दव्वाइं अबत्तवग व्वाइं च एवं चेव भाणियन्वाइं / / 34 // णेगम ववहाराणं आणुपुत्वी दव्याणं अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? एगं दव्व पडुच्च-जहन्नणं एगं समयं, उक्कोसेणं अणतं कालं / णाणा दवाई पडुच्च-णत्थि अंतरं ॥णेगम बवहाराणं अणाणुपुब्बी दव्वाणं अंतरं कालओ केवचिर होई ? एगं दध्वं पडुच्च जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेणं असंखज्जं कालं / णाणादव्वाइं पडुच्च गत्थि अंतरं // गम ववहाराणं अवत्तव्वग दव्याणं अपेक्षा जघन्य एक समय की उत्कृष्ट असंख्यात काल की और बहुत द्रव्य की अपेक्षा से नियमा से सदैव पाते हैं. इसी तरह अनानुपूर्वी व अवक्तव्य का कहना / / 34 // छट्ठा अंतर द्वार कहते हैं-अहो. भगवन् ! आनुपूर्वी द्रव्य विखरे पीछे पीछा आनुपूर्वी द्रव्य बने उस में कितने काल का अंतर होता अहो शिष्य ! एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्य एक समय उत्कृष्ट अनंत काल का अंतर पडे और बहुत द्रव्य की अपेक्षा कदापि अंतर पडे नहीं. अहो भगवन् ! अनानुपूर्वी द्रव्य का कितना अंतर पडे ? अहो शिष्य ! एक द्रव्य आश्रीय जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात काल और बहुत द्रव्य की अपेक्षा से प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी घालाप्रसादनी For Private and Personal Use Only