________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र 480 एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार मुत्र-चतुर्थ मूल 48 अस्थि // 30 // नेगम बवहाराणं आणपव्वी दव्वाइं किं संखिज्जाइं असंखिज्जाई। अणंताई ? नो संखिजाइं नो असंखिजाइं, अणंताई, एवं अणाणुपुव्वी दवाइं अवत्तबग दवाई च अणताइ भाणियव्वाइं // 31 // नेगम ववहाराणं आणपुवी दव्वाइं लोगस्स किं संखिजइ भागे होज्जा, असंखिज्जइ भागे होजा, संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, असंखेजेसु भागेसु होजा, सवलोए होज्जा ? एग दव्वं पडुच्च संखेजइ भागे वा होज्जा, असंखजइ भागे वा होजा, संखजसु भागेसु वा होज्जा, असंखिजेसु भागे सु वा होज्जा, सबलोए वा होजा / णाणा दूसरा संख्या द्वार-अहो भगवन् ! नैगम व्यवहार नय के मत से तीनों प्रकार के द्रव्य क्या संख्याते . असंख्याते हैं या अनंत हैं ? अहो शिष्य ! तीनों प्रकार के द्रव्य संख्याते असंख्याते नहीं है परंतु अनंत हैं // 31 // तीसरा क्षेत्र द्वार-नैगम व्यवहार नय के मत से आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने 7 भाग में हैं क्या संख्यात भाग में हैं कि असंख्यात भाग में हैं? क्या संख्यातवे भाग में है या असंख्यातवे भाग में हैं, या सब लोक में है ? अहो शिष्य ! एक द्रव्य आश्री आनुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्यात भाग में हैं, असंख्यात भाग में है, संख्यातवे भाग में है, असंख्यातवे भाग में हैं और संपूर्ण लोक में हैं.' + और बहुत ट्रव्य आश्री संपूर्ण लोक में होवे. क्यों कि तीन प्रदेशिक स्कंध से अनंत प्रदेशिक स्कंध 48488अनुगम विषय 4800-40 अर्थ For Private and Personal Use Only