Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयवोधिनी टीका पद २२ सू. ३ कर्मबन्धनिरूपणम्
२९ वि जहा ओहिया जीवा, अवसेसा जहा नेरइया. एवं ते जीवेगिदियवज्जा तिण्णि तिष्णि भंगासव्वत्थ भाणियव्यत्ति, जाव मिच्छादसणसल्ले, एव एगत्तपोहत्तिया छत्तीसं दंडगा हो ति” ॥सू. ३॥ ___ छाया--जीवः खलु भदन्त ! प्राणातिपातेन कति कर्मप्रकृती बंध्नाति ? गौतम ! सप्तविधवन्धको वा अष्टविधवन्धको वा, एवं नैरयिको यावत् निरन्तरं वैमानिकः, जीवाः खलु भदन्त ! प्राणातिपातेन कति कर्मप्रकृती वनन्ति ? गौतम ! सप्तविधबन्धका अपि अष्टविधवन्धका अपि, नैरयिकाः खलु भदन्त ! प्राणातिपातेन कति कर्मप्रकृतीः वध्नन्ति ? गौतम ! सर्वेऽपि तावद् भवेयुः सप्तविधबन्धकाः, अथवा सप्तविधबन्धकाश्च अष्टविधवन्धकश्च, अथवा सप्तविधबन्धकाश्च अष्टविधवन्धकाश्च,
कर्मबन्ध का निरूपण __ शब्दार्थ-श्री गौतमस्वामी(जीवे णं भंते! पाणाइवाएण कइ कम्मपगडीओ बंधइ) हे भगवन् जीव प्राणातिपात के द्वारा कितनी कर्म प्रकृतियोंका बंध करता है ? ( गोयमा ! सत्तबिहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा) हे गौतम ! सात प्रकार कीप्रकृतियों का अथवा आठ प्रकार की प्रकृतियों का बन्धक होता है (एवं नेरइए जाव निरंतर बेमाणिए) इसी प्रकार नारक यावत् निरन्तर वैमानिक । ___(जीवा णं भंते ! पाणाइवाएणं कइ कम्मपगडीओ बंधंति ?) हे भगवन् ! बहुत जीव प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियां बांधते हैं ? ( गोयमा! सत्तविह बंधगा वि अविह बंधगा वि) हे गौतम! सात प्रकार की प्रकृतियों को बांधनेवाले भी और आठ प्रकार की प्रकृतियों को बांधनेवाले भी होते हैं
(नेरइयाणं भंते! पाणाइवाएणं कइ कम्मपगडीओ बंधंति)हे भगवन् ! नारक जीव प्राणातिपात के द्वारा कितनी कर्मप्रकृतियां बांधते हैं ? (गोयमा ! सव्वे वि तावहोज्जा सत्तविहबंधगा) हे गौतम ! सभी सात प्रकृतियों के बंधक होते हैं । (अहवा
मनु नि३५॥ शुभार्थ-(जीवे णं भंते ! पाणाइवाएण' कई कम्मपगडीओ बंधई?) भगवन् ७५ प्रायतिपात द्वारा दी प्रतियोन। अनुम५ ४२ छे ? ( गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अढविहबंधए वा)
गौतम! सात ४२नी प्रतियाना अथवा मा प्रा२नी प्रतियाना मध थाय छे. (एवं नेरइए जाव निरंतर वेमाणिए ) मे४ प्रा२ ना२४यावत् निरन्तर वैमानि४.
(जीवा णं भंते ! पाणाइवाएण कइ कम्मपगडीओ बंधति ) भगवन् । ७५ प्रतिपातयी 32ी प्रतियो सांधे छ ? (गोयमा ! सत्तविहबंधगा वि अठविह बधगा वि) गौतम ! સાત પ્રકારની પ્રકૃતિને બાંધનારા પણ અને આઠ પ્રકારની પ્રકૃતિને બાંધનારા પણ હોય છે.
(नेरईयाण भते पाणाइवाएण कइ कम्मपगडीओ बंधति ? ) ले सन् ! ना२४ प्रातिपातना ॥ हेक्षी ४ प्रतिये। मांधे छ ? (गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविइ बंधगा)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫