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पुद्गल द्रव्य के पुद्गलपना अथवा मिलन, विखरन गुण अथवा परमाणु रूप की अपेक्षा एक है क्योंकि पुद्गल में पुद्गलपना और परमाणुपना - सब में एक समान है अतः एक है । परन्तु गुण अनेक हैं व पर्याय अनेक हैं अथवा परमाणु अनंत हैंइस प्रकार पुद्गल अनेक है ।
छओं द्रव्य की स्वयद्रव्य, स्वयक्षेत्र, स्वयकाल व स्वयभाव की अपेक्षा सत्यता है परन्तु परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल व परभाव की अपेक्षा असत्यता है । पुद्गल द्रव्य का स्वयद्रव्य गुण - पर्याय समूह, स्वयक्षेत्र परमाणु, स्वकाल, अगुरुलघु का फिरना व स्वयं स्वभाव जो मुख्य गुण मिलन व विखरन है ।
वैदिक दर्शन में मोक्ष के साधन दस बतलाये गये हैं- मौन, बह्मचर्य, सत्संग, तपस्या, शास्त्रश्रवण, धर्मपालन, कर्मपालन, युक्तिपूर्ण शास्त्रव्याख्या, एकांतचिता जप व समाधि |
समयसार में कहा है
जह णवि सक्कमणज्जो अणज्जभासंविणा उ गाउ । तह ववहारेण
परमत्थुवएसणमसक्कं ॥
विणा
अर्थात् जिस प्रकार अनार्य – म्लेच्छों को — म्लेच्छ भाषा के बिना अर्थ ग्रहण करना शक्य नहीं है, उसी प्रकार व्यवहार के बिना परमार्थ का उपदेश अशक्य है । अतः व्यवहार का उपदेश है । काल द्रव्य 'अस्ति' है किन्तु काय नहीं है । कुन्दकुन्दाचार्य को पद्मनंदि, वक्रग्रीवाचार्य, एलाचार्य व गृध्रपिच्छाचार्य के नाम से भी अभिहित किया है ।
पंचास्तिकाय संग्रह में कहा है
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खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होंति परमाणू । इदि ते चटुव्वियप्पा पुद्गलकाया मुणेयव्वा ॥ ७४ ॥
अर्थात् पुद्गलास्तिकाय के चार भेद जानना – स्कंध, स्कंधदेश, स्कंध प्रदेश और परमाणु | a. श्रीकलासागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र कोवा (गांधीनगर) पि ३८२००९ स्थि चिरं वा खिष्पं मत्तारहिदं तु सा वि खलु मत्ता । पोग्गलदव्वेण विणा तम्हा कालो पडुच्च भवो ॥ २६ ॥
पंचास्तिकाय संग्रह में कहा है
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