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सत्तरसमहिया कीरइ आणुपाणमि हुंति खुद्दभवा । सत्तीस सय तिहुअत्तर पाणु पुण एगमुहुत्तम्मि ॥२॥
अर्थात् निगोद का जीव मनुष्य के एक श्वासोच्छ्वास में कुछ अधिक सत्तरह अर्थात् सत्तरह बार जन्म-मरण करता है । और सज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य के एक मुहूर्त में ३७७३ श्वासोच्छ्वास होते हैं ।
पण्णसट्ठि सहस्स पण सए य आवलियाणं दो सय छप्पन्ना एग
छत्तीसा मुहुत्त खुद्दभवा । खुद्दभवे ॥३॥
अर्थात् निगोद के जीव एक मुहूर्त में ६५५३६ भव वाले जीव का २५६ आवली प्रमाण आयुष्य होता है । से छोटा भव होता है । भव अर्थात् जन्म-मरण । आयुष्य और किसी का नहीं है ।
करते हैं और उस निगोदयह क्षुल्लकभव अर्थात् छोटे इस निगोद वाले जीव से कम
कहा जाता है कि व्यवहार राशि में से जितने जीव जिस समय में मोक्ष जाते हैं। उतने ही जीव उस समय में अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आते हैं ।
जो निगोद वाले गोले के जीव छः दिशाओं का पौद्गलिक आहार पानी लेते हैं वे सकल गोले कहलाते हैं । और जो लोक के अन्त प्रदेश में निगोद के गोले हैं उनके जीव तीन दिशाओं का आहार ग्रहण करते हैं वे विकल गोले कहलाते हैं । जैसे काजल की कोपली भरी हुई होती है । वैसे ही सूक्ष्म निगोद वाले जीव सर्वलोक में भरे हुए हैं । उनको अनंत दुःख हैं ।
परमाणु पुद्गल में जघन्य गुण एक वर्णादि यावत् उत्कृष्ट अनंत गुण वर्णादि हो सकते हैं ।
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पुद्गल द्रव्य चार गुण - ( रूपी, अचेतन, सक्रिय व मिलन, विखरन, पूरण, गलन ) होते हैं । "क्रियाकारित्व इति द्रव्यत्वं" गुण पर्याय वत्वं द्रव्यत्वं । यह लक्षण सब द्रव्य में प्राप्त होता है । इस लक्षण से अतिव्याप्ति, अव्याप्ति व असंभवादिदूषणं का अभाव है । जो क्रिया करे वह द्रव्य है । षट् गुण हानि-वृद्धि छओं द्रव्यों में होती है । अतः अगुरुलघु पर्याय सब द्रव्य में होती है । जो गुण एक द्रव्य में है परन्तु दूसरे द्रव्य में नहीं है उसे वैधर्मपना कहते हैं- जैसे चेतनता जीव द्रव्य में है परन्तु अचेतनता अजीव द्रव्य में हैं । जो दूसरे भिन्न क्रिया करे उसका नाम वैधर्म्यपना है । एक सरीखी क्रिया अर्थात् काम करे उसे साधर्मपना कहते हैं । अचेतन गुण
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