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सकते हैं । जैसे एक दीपक के प्रकाश में अनेक दीपक का प्रकाश समाविष्ट हो सकता है ; जैसे जल से भरे हुए बर्तन में बालू का समावेश हो सकता है और जल उस बर्तन से बाहर नही निकला । दूध से भरे हुए कटोर में चीनी का समावेश हो सकता है, उसी प्रकार एक आकाशप्रदेश में अनंत परमाणु तथा अनंत स्कंधों का समावेश हो सकता है क्योंकि अपने-अपने स्वभाव करके रहते हैं ।
कोई भी संख्यात प्रदेशी स्कंध लोक के असंख्यात प्रदेश को अवगाहित कर नहीं रह सकता - ऐसा प्रज्ञापना सूत्र में कहा है । कोई अनंतप्रदेशी स्कंध एक समय में सर्वलोक को अवगाहित कर रहता है । यह बात केवली समुद्घात से सिद्ध हो जाती है । इस समुद्घात तक कालमान आठ समय का है । कोई एक अचित्त महास्कंघ विस्रसा परिणाम से प्रथम समय असख्यात योजन विस्तार से दण्ड करें दूसरे समय कपाट करें, तीसरे समय मंथन ( थानु ) करें व चतुर्थ समय में प्रतर पूर्ण करें अतः चतुर्थ समय में अचित्त महास्कंध समस्त लोक में व्याप्त कर रहता है। चूंकि उस समय में जीव के प्रदेश सम्पूर्ण लोकव्यापी बन जाते हैं । इसके बाद पांचवें समय में प्रतर का संहरण होता है अर्थात् समेटते हैं, छट्ठ े समय में मंथन होता है, सातवें समय में कपाट रूप व आठवें समय में दण्ड का संहरण करके खण्ड-खण्ड हो जाता है | अतः चतुर्थ समय में अचित्त महास्कंध सर्वलोकव्यापी रहता है । अस्तु निरश में कार्य-कारण दो अंश की कल्पना करना अज्ञान सूचक है । "परमाणु अविभागीयते ।" इस अविभागी को निरंश भी कहते है । चूंकि आकाश क्षेत्र है, परमाणु क्षेत्री है | परमाणु उत्कृष्ट छः दिशाओं का स्पर्श करता है । छः दिशाओं का स्पर्श होने से भी परमाणु निरंश है ।
किसी भी स्थिति में परमाणु में कर्कश स्पर्श, मृदु स्पर्श, गुरु स्पर्श व लघु स्पर्श नहीं होता है । क्योंकि शीत का विरोधी उष्ण और स्निग्ध का विरोधी रूक्ष है अतः परमाणु में दो अविरोधी स्पर्श होते हैं ( शीत-उष्ण, स्निग्ध- रूक्ष में से ) ।
चूंकि परमाणु में पांच गुण मिलते हैं - ( एक वर्ण, एक रस, एक गंध व दो स्पर्श ) द्विप्रदेशी स्कंध में जघन्य पांच गुण उत्कृष्ट दस गुण मिल सकते हैं । ( दो वर्ण, दो गंध, दो रस व चार स्पर्श ) तीन प्रदेशी स्कंध में जघन्य पांच गुण तथा उत्कृष्ट बारह गुण मिलते हैं ( तीन वर्ण, दो गंध, तीन रस व चार स्पर्श ) । चार प्रदेशी स्कंध में जघन्य पांच गुण व उत्कृष्ट १४ गुण मिलते हैं ( चार वर्ण, चार रस, दो गंध व चार स्पर्श ) । पांच प्रदेशी स्कंध में जघन्य पांच गुण व उत्कृष्ट १६ गुण मिलते हैं ( पांच वर्ण, पाँच रस, दो गंध, चार स्पर्श ) ।
१. विशेषावश्यक भाज्य ।
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