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इस प्रकार संख्यातप्रदेशी स्कंध अथवा असंख्यातप्रदेशी स्कंध अथवा सूक्ष्म अनंतप्रदेशी स्कंध में जघन्य पांच गुण (१ वर्ण, १ गंध, १ रस, २ स्पर्श) और उत्कृष्ट १६ गुण मिलते हैं।
गर्म में उत्पन्न हुए जीव के पांच वर्ण, पांच रस, दो गंध व आठ स्पर्श का परिणमन होता है। चूंकि ये पुद्गल के गुण-परिणाम है ।
बादर परिणाम वाले स्कंध में जघन्य सात गुण (पांच गुण पूर्ववत्, कर्कश, मृदु, गुरु, लघु-ये चार स्पर्शों में से अविरोधी दो स्पर्श होते हैं एवं सात ) तक उत्कृष्ट २० गुण ( ५ वर्ण, २ गंध. ५ रस व ८ स्पर्श) मिलते हैं। अत: बादर परिणाम स्कंध में जघन्यतः चार स्पर्श होते हैं ।
परमाणु पुद्गल पर्याय की अपेक्षा जघन्य रूप में एक गुण कृष्ण, अथवा एक गुण नील, अथवा एक गुण रक्त, अथवा एक गुण पीत, अथवा एक गुण शुक्ल होता है । इस प्रकार परमाणु दो गुण यावत् सख्यात गुण यावत् असख्यात गुण यावत् अनंत गुण हो सकते हैं।
"सहभाविनो गुणः" "क्रमभाविनो पर्याया" अर्थात सदैव सहभावी होता हैवह गुण है तथा पर्याय क्रमभावी होता है ।
निगोद के दो भेद-१-सूक्ष्म निगोद और बादर निगोद । __ बादर निगोद के जीव सूई के अग्रभाग जितनी जगह में अनंत हैं। वे सिद्ध जीव से भी अनंतगुणे हैं । सात लाख योनि सूक्ष्म निगोद व सात लाख बादर निगोद है ।
सूक्ष्म निगोद ...जितने लोकाकाश के प्रदेश हैं उतने ही निगोद के गोले हैं। और उस एक-एक गोले में असंख्यात निगोद हैं। जिसमें अनन्त जीवों का पिंड रूप एक शरीर होता है उसका नाम निगोद है। उस निगोद में अनंत जीव है। प्रत्येक संसारी जीव के असंख्यात प्रदेश हैं। उस एक-एक प्रदेश में अनंती कर्म-वर्गणा लग रही है और उस एक-एक वर्गणा में अनंत पुद्गल परमाणु है। और अनत पुद्गल परमाणुओं का जीव से सम्बन्ध है। अनंतगुण परमाणु जीव रहित अर्थात अलग भी है । द्रव्यानुभव रत्नाकर में कहा है
गोला इहसंखीभूया असंखनिगोयओ हवई गोलो।
इक्किक्कम्मि निगोए अनन्तजीवा मुणेयव्वा ॥१॥ अर्थात इस संसार में असख्यात गोले हैं। उस एक-एक गोले में असंख्यात निगोद है और उस एक-एक निगोद में अनंत जीव हैं।
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