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पुद्गल का सम्मान करने वाला उद्धत है, वह नीचे जाता है । आत्मा का सर्वसम-सत्ता को सम्मान देने वाला ही लोक-विजेता बन सकता है ।
कोई भी वस्तु और वस्तु-व्यवस्था स्यादवाद या सापेक्षवाद की मर्यादा से बाहर नहीं है। दो विरोधी गुण एक वस्तु में एक साथ रह सकते हैं। उनमें सहानवस्थान (एक साथ टीक न सके ) जैसा विरोध नहीं है ।
कैवल्य लाभ के बाद भगवान महावीर ने जो कहा- वह द्वादशांग-गणिपिटक में गुथा हुआ है । बोधिलाभ के बाद महात्मा बुद्ध ने जो कहा-वह त्रिपिटक में गु था हुआ है।
सातवें समय में कपाट रूप में तथा आठवें समय में दण्ड संहार कर खण्ड २ हो जाता है। अत: चतुर्थ समय अनंतप्रदेशी स्कंध सर्वलोक में व्याप्त कर रहता है जिससे अचित्त महास्कंध भी कहा जाता है। इसका विशेष वर्णन विशेषावश्यक भाष्य में है।
बौद्ध दर्शन परमाणु को सांश मानता है, निरंश नहीं। यह सम्यग् नहीं है ।
परमाणु में एक वर्ण, एक गंध, एक रस व दो स्पर्श ( शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष-इन चार स्पर्शों में दो विरोधी स्पर्श) होते हैं।
स्कंध देश के दो प्रकार हैं- यथा-१ सअंश देश व २ निरंश देश । जो सअंश हैं उसे देश कहते हैं तथा जो निरंश है उसे प्रदेश कहते हैं। क्योंकि जो प्रकष्ट देश हैं उसी का नाम प्रदेश हैं अतः जिसमें कोई दूसरा अंश न मिले उसका नाम प्रदेश है।
सप्रदेशी अवयव का संभव न होता तो, प्रदेशी अवयव को देश कहना चाहिए । द्वि प्रदेशी स्कंध का एक प्रदेशी विभाग देश व प्रदेश जानना चाहिए। ऐसा कभी न हुआ है, न कि सब पुद्गल स्कंध रूप में परिणत हो जायेंगे। प्रवाह की अपेक्षा स्कंध हो या परमाणु हो दोनों की कालस्थिति अनादि-अनंत हैं। व्यक्तिगत भाव से उत्कृष्ट असंख्यातकाल की स्थिति है। मानो कि दो परमाणु मिलकर स्कंध रूप में परिणत हुए, फिर दोनों अलग-अलग हो गये। फिर उन्हीं परमाणुओं का संयोग उत्कृष्ट अनंतकाल के बाद हो सकता है । ___ एक आकाशप्रदेश में अनंतप्रदेशी स्कंध रह सकता है, क्योंकि आकाश का अवगाहक गुण है अतः जहाँ एक पुद्गल द्रव्य है वहाँ अनंतपुद्गल द्रव्य रह
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