Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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प्रथम विवेक की बिल्कुल समाप्ति पर प्रौर तीसरी वार चतुर्थ विवेक की द्वितीय कारिका की व्याख्या में 'दशरूपक' के प्रलोक-टीकाकार ने तृतीय प्रकाश की २५वीं कारिका की व्याख्या में 'यमा छद्मना बालिवघो मायुराजेन उदात्तराघवे परित्यक्तः, इस रूप में उदात्तराघव का उल्लेख करते हुए उसे मायुराज की कृति बतलाया है। वकोक्तिजीवित-कार' कुन्तक ने भी 'यथा उदात्त राघवे कविना वैदग्ध्यवशेन मारीचमृग मारणाय प्रयातस्य लक्ष्मणस्य परित्राणार्थं सीतया कातरत्वेन रामः प्रेरित इत्युपनिबद्धम्' इस रूप में 'उदात्तराघव' का उल्लेख किया है। इन दोनों उल्लेखों से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि इस 'उदात्तराघव' के कवि ने रामचरित को उदास बनाने के लिए उसको कथावस्तु में नये संशोधन किए है। इसीलिए कुन्तक ने लिखा भी है कि
"यथा ( एकस्यामेव दाशरथिकथार्या) रामाभ्युदय उदात्तराघव-वारचरित बालरामायणकुत्याराव - मायापुष्पकप्रभृतयः । ते हि प्रबन्धप्रवरास्तेनं व कथामार्गेण मिरगंलरसाजारगर्भसम्पदा प्रतिपदं प्रतिवाक्यं प्रति प्रकरणं च प्रकाशमानाभिनवभ X x x हर्षातिरेकमनेकशोऽप्यास्वाद्यमानः समुत्पादयन्ति सहृदयानाम् ।"
[वक्रोक्ति जीवित पृ० ५३९ ]
'दशरूपकावलोक' में [३-५६, ३-३१, ४-२३, २८] उदात्तराघव के तीन श्लोक भी उद्घृत किए गए हैं । विश्वनाथ ने साहित्य दर्पण [परि० ६, श्लोक २७, ५०, १५४] में इसके इलोक उदत किए हैं। भोजदेव के 'शृङ्गारप्रकाश' ( पृ० १२], सरस्वती कण्ठाभरण [ १० ६४५१, हेमचन्द्राचार्य के 'काव्यानुशासन' को स्वोपज्ञ मलङ्कारचूड़ामणिवृत्ति [पृ० १५० ] में भी इसके उदाहरण दिए गए हैं। इससे यह नाटक अत्यन्त लोकप्रिय रहा प्रतीत होता है। राजशेखर ने 'मायुराज' को कलचुरि वंश का कवि कहा है। ऐसा जल्हा-संग्रहीत 'सूक्तिमुक्तावली' के निम्न लेख से प्रतीत होता है
"राजशेखर --
मायुराजसमो जातो नान्यः कलचुरिः कविः । उदन्वतः समुत्तस्थुः कति वा तुहिनांशयः ॥
[जल्हरण- संग्रहीत सूक्तिमुक्तावली ४५ ] इस कार बहुप्रशंसित, बहुचर्चित यह उदासराघव नाटक निश्चय ही प्रत्यन्त उच्चकोटि का नाटक रहा होगा. किन्तु दुर्भाग्य से इस समय यह उपलब्ध नहीं हो रहा है ।
( ९ ) कृत्यारावणम् - नाट्यदर्पणकार ने कृत्यारावरण के १३ उदाहरण इस ग्रन्थ में दिए हैं। इस 'प्रमुख' में ने 'अवलगित' का उदाहरण [ २-३६ ], प्रथम अङ्क से 'अधिबल' का उदाहरण [२ - ३१] द्वितीय श्रम से 'वज्र' का उदाहरण [१-५० ], चतुर्थ प्रक से 'प्रार्थना' का उदाहरण [१-५३], षष्ठ अङ्क से 'विद्रव' का उदाहरण [ १ - ५४ ], मोर सप्तम भरत से 'विशेष' और 'शक्ति' के उदाहरण में [१-५६, ६०] ७ उदाहरण तो प्रस्-निर्देश पूर्वक उद्धत किए हैं। इनके अतिरिक्त रूप, युति, खेद, श्राक्ष्य, प्रारभटी-वृत्ति, प्रङ्गोग्यू इन ६ के उदाहरण अङ्कोल्लेख के बिना दिए हैं। इस प्रकार केवल नाट्यदर्पण' में १३ बार 'कृत्यारावण' नाटक का उल्लेख हुआ है । इसके अतिरिक्त अभिनवगुप्त की अभिनवभारती [श्र० १० पृ० ४१०, श्र० ५० पृ० १०४-१०५, प्र० ४२ पृ० १७६ ख० २, ४४४, ५२३, ५२४ ख० ३ पृ० १३, ४०] में जगह भोजदेव के 'शृङ्गारकाश' में प्र० १२, १८७, १६७, २०० तीन जगह, हेमचन्द्राचार्य के काव्यानुशासन-विवेक में एक जगह [अ० ६, पू० २७९ ], शारदातनय के
भाव
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