Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम् [ का०६७, सू० १४४ प्रविश्य-प्रतीहारी] देव उवस्थिदो
[देव उपस्थितः।] रामः-अयि ! कः ? प्रतीहारी–देवस्स आसन्नपरिचारो दुम्मुहो इति
[देवस्य आसन्नपरिचारको दुर्मुखः] इति ॥" अत्राकस्मात् प्रतीहारवचनमन्याभिप्रायप्रयुक्तं प्रस्तुतरामवचसा संयुज्यमानत्वाद् 'गएडः'। यथा वा बालिकावञ्चितकेकंसः–रिष्टस्तावदुदप्रगविकटः शैलेन्द्रकल्पो वृषः,
सप्तद्वीपसमुद्रजस्य पयसः शोषक्षमा पूतना। केशी वाजितनुः खुरैर्विघटयेदापन्नगान्मेदिनी, साधं बन्धुभिरेवमूर्जितबलं कः कंसमास्कन्दति ।
[नेपथ्ये) जो अन्नओ पसूओ अन्नेण य वढिओ महुप्पहवो। कण्हो सो परउट्ठो मारेइ न कोइ धारेइ ॥ [योऽन्यतः प्रसूतोऽन्येन च वर्धितो मधुप्रभवः ।
कृष्णः स परपुष्टो मारयति न कोऽपि न धारयति ।]" यह बाहु गलेमें शीतल और चिकना हार है । इसका कौनसा भाग प्रिय नहीं है ? [सब कुछ ही प्रिय है] । किन्तु यदि कुछ असह्य है तो वह इसका वियोग है।
[प्रविष्ट होकर] प्रतीहारी–वेव ! उपस्थित है। राम-अरे कौन ? [उपस्थित है। प्रतीहारी-पापका प्रासन्न परिचारक दुर्मुख ।"
इस [संवाद] में अन्य अभिप्रायसे प्रयुक्त [अर्थात् दुमुखके प्रागमनको सूचना देनेके अभिप्रायसे कहा गया] भी प्रतीहारीका वचन ['यदि परमसह्यस्तु विरहः' इस प्रस्तुत रामवचनके साथके-साथ मिल जानेसे 'गण्ड' [नामक वोथ्यङ्गका उदाहरण बन गया है ।
अथवा जैसे 'बालिकावञ्चितक' में -
"कंस्-बड़े-बड़े सींगोंसे भयङ्कर रिष्ट, महान् पर्वतके समान वृष, सातों द्वीपोंके समुद्रोंमें होनेवाले सारे जलको सोख जानेमें समर्थ पूतना, [ये सब मेरे सहायक हैं] । और प्रश्व-रूपधारी केशी अपने खुरोंसे पाताल तक भूमिको खोद डाल सकता है इस प्रकारके बन्धुओं [सहायकों के कारण प्रत्यन्त शक्तिशाली कंसको कौन पराजित कर सकता है ?
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[नेपथ्यमें] जो किसी दूसरेसे उत्पन्न हुमा और किसी दूसरेसे पाला गया [अर्थात देवकी-वसुदेव का पुत्र और नन्दके द्वार पाला गया कृष्ण] वह अत्यन्त बलशाली [परिपुष्ट, मधुसे उत्पन्न] माधव कृष्ण मार रहा है और कोई बचानेवाला नहीं है।"
रंगभूमिमें प्रविष्ट [कंस रूप] पात्रके द्वारा पठित वचनके साथ मिल जाने वाला यह नेपथ्य-पठित अनिष्टार्थ सूचक वचन गण्ड [का उदाहरण बन गया है।
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