Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० २०७, सू० २६८ ]
चतुर्थी त्रिवेकः
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भीमपराक्रमोऽरिमर्दन इत्यादि । वाणिजे पुनः प्रायशो बाहुल्येन दत्तशब्दान्तं नाम - विधेयम् । यथा समुद्रदत्तः सागरदन्त इत्यादि । प्रायोवचनाद धनपतिरित्याद्यपि । विप्रे तु गोत्र-कर्मणोरानुरूप्येण नाम कल्पनीयम् । यथा शांडिल्यो . गार्ग्यायण इत्यादि । श्रथर्व शिकः सामको अग्निहोत्रिय इत्यादि । प्रायोवचनादग्निशर्मा सोमशर्मा इत्यपि ।
तथा नृपस्त्रियां शुभं शुभसं सूचकं नाम कर्तव्यं । यथा सुलक्षणा विजयवती इत्यादि । परणयोषिति वेश्यायां पुनर्दत्ताशब्दान्तं सेनाशब्दान्तं च नाम करणीयम् । यथा देवदत्ता, वसन्तसेना । प्रायोग्रहरणाद् विदग्धमित्रा वसन्तश्री रित्याद्यपि । तथा hari प्रेष्यायां योषिति मालिनी मल्लिका इत्यादीनि पुष्पवाचकानि, आदिशब्दात् चूतलतिका प्रियंगुमंजरी इत्यादीनि च नामानि कल्पनीयानि । चेटे प्रेषणीयपुरुषे पुनः मंगलं मंगलकारणं वस्तु कीर्त्यत शब्द्यते येन नाम्ना तत् सिद्धार्थ केत्यादि सिद्धिं नेयम् । एवमन्यदप्यत्र उत्तम - मध्यम अधमपात्राणां प्रयोजनानुसारतो नाम रूपकेषु कीर्तनीयमिति ॥ २०६-२०७ ।।
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तदेवं नाटकादीनि वीथ्यतानि द्वादश रूपाणि सप्रपञ्चं लक्षितानि ॥ अन्यान्यपि रूपकारिण दृश्यते । यदाहु:
अधिकतर 'दत्त' शब्द जिसके अंतमें हो इस प्रकार के नामको कल्पना करनी चाहिए। जैसे समुद्रवत, सागरवन्त इत्यादि । प्रायः शब्दका ग्रहण होनेसे [वत्तान्त नामोंको छोड़कर अन्य प्रकारके मामभी बनियोंके रखे जा सकते हैं] जैसे धनपति इत्यादि । ब्राह्मणोंके नाम, गोत्र और कर्मके अनुरूप कल्पित करने चाहिए। जैसे शाण्डिल्य, गार्ग्यायण [ ये दोनों नाम गोत्र-परक हैं] और प्राथवं रिक, सामक, प्रग्निहोत्रिय इत्यादि [ ये तीनों नाम कर्मके आधारपर बनाए गए हैं ] | राजाकी स्त्रीके लिए शुभ अर्थात् मंगलका सूचक नाम कल्पित करना चाहिए । जैसे सुलक्षणा या विजयवती इत्यादि । पणयोषित प्रर्थात् वेश्याके लिए दत्ता शब्द या सेना शब्द जिसके अंत में इस प्रकारके नामको कल्पना करनी चाहिए। जैसे देववत्ता, वसन्तसेना इत्यादि । प्रायः शब्दके ग्रहणसे [ दत्तान्स तथा सेनान्त नामों को छोड़कर ] विदग्धमित्रा वसन्ती इत्यादि [नाम भी वेश्याघ्रोंके रखे जा सकते हैं] । चेटी अर्थात् जिसको [प्रियके पास दूती श्रादिके रूप में सन्देश देकर ] भेजा जा सके इस प्रकारको [विश्वस्तसेविका ] स्त्रीके लिए मालिनी, मल्लिका इत्यादि पुष्पवाचक, और आदि शब्दसे वृतलतिका, प्रियंगुमंजरी इत्यादि नामोंकी भी कल्पना को जा सकती है। धौर सेट अर्थात् भेजे जा सकने योग्य पुरुषके लिए मंगल अर्थात् मंगलजनक वस्तुका जिस शब्द से कथन सूचित हो इस प्रकारका नाम कल्पित करना चाहिए। जैसे सिद्धार्थक यादि नाम बनाने चाहिए। इसी प्रकार यहाँ रूपकों में प्रयोजनके अनुसार उत्तम, मध्यम तथा प्रथम पात्रोंके नाम रखने चाहिए। [५३५४] २०६-२०७] "
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इस प्रकार नाटक से लेकर वीथी- पर्यन्त बारह प्रकारके रूपकोंका विस्तारपूर्वक विवेचन यहाँ तक कर दिया गया है।
[ इन बारह प्रकारके रूपकों के प्रतिरिक्त] ग्रन्थ रूपक भी पाए जाते हैं । जैसा कि मागे कहते हैं
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