Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi

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Page 522
________________ का० २११, सू० २६६ ] [३] - चौर्यरतप्रतिभेदं चतुर्थो विवेकः चापि । यूनोरनुरागवर्णनं यत्र ग्राम्यकथाभि: कुरुते किल दूतिका रहसि ॥ मन्त्रयति च तद्विषयं न्यग्जातित्वेन याचते च वसु । लब्ध्वापि लब्धुमिच्छति 'दुमिलिता' नाम सा भवति ।। ५७ । [४] - प्रथमानुराग - मान- प्रवास-शृङ्गारसंश्रयं यत् स्यात् । प्रावृड्-वसन्तवर्णनपरमन्यद् वापि सोत्कण्ठस् ॥ श्रन्ते वीररसाद्यैनिबद्धमेतच्चतुभिरपसारैः । प्रस्थानमिति ब्रुवते प्रवासमुपलक्षयत् सुधियः ॥ ५८ ॥ नृत्यच्छिन्नानि खण्डान्यप्रसाराः ॥ ५८ ॥२११॥ [ ४०५ [३] दुर्मिलिता जिसमें कोई व्रती एकान्त में ग्राम्य [ ग्रश्लील ] कथानों द्वारा युवक और युवतियोंके प्रेमका वर्णन और उनके चौर्यरतका प्रकाशन करती है । उसके विषय में सलाह करती है नीच जातिकी होनेसे धन माँगती है । धनके मिल जानेपर भी और अधिक धन चाहती है उसको 'दुर्मिलित' नामक रूपक कहा जाता है ॥ ५७ ॥ साहित्यदर्पणकारने 'दुर्मिलिता' के स्थानपर दुर्मल्लिका आदि नामोंका प्रयोग किया गया है और उसका लक्षण निम्न प्रकार किया है दुर्मल्ली चतुरंका स्यात् कैशिकी - भारतीयुता । गर्भा नागर-नरा न्यूननायकभूषिता ॥ ३०३ ॥ त्रिनालिः प्रथमोऽङ्कोऽस्यां विटक्रीडामयो भवेत् । पंचनालिद्वितीयो ऽङ्को विदूषकविलासवान ॥ ३०४ ॥ रणालिकस्तृतीयस्तु पीठमर्दविलासवान् । चतुर्थो दशनालिः स्यादेकः क्रीडितनागरः ।। ३०५ || [४] प्रस्थान प्रथम अनुराग, मान, प्रवास, श्रृंगाररससे युक्त वर्षा श्रौर वसन्तके वर्णन, अथवा औौर भी उत्कण्ठा-प्रदर्शक सामग्रीसे परिपूर्ण, अन्तमें वीररस द्वारा निबद्ध किया गया और चार अपसार [अर्थात् नृत्य द्वारा छिन्न होनेवाले खण्डों] में विरचित [ उपरूपकभेदकों] विद्वान् लोग प्रवासके सूचक 'प्रस्थान' इस नाम से कहते हैं ॥ ५८ ॥ नृत्यके द्वारा छिन्न होनेवाले [रूपकके] खण्डोंको अपसार कहते हैं । 'प्रस्थानक' का लक्षरण साहित्यदर्पणकारने निम्न प्रकार किया हैप्रस्थाने नायको दासो हीनः स्यादुपनायकः । दासी च नायिका वृत्तिः कैशिकी भारती तथा ॥ २८० ॥ सुरापानसमा योगादुद्दिष्टार्थस्य संहतिः । कौ द्वौ लयतालादिर्विलासो बहुलस्तथा ॥ २८१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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