Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम् [ का० २०८-१० सू० २६६
[ सूत्र २६६-१] – विष्कम्भक - प्रवेशकरहितो यस्त्वेकभाषया भवति । अप्राकृत संस्कृतया स सट्टको नाटिका ।। ५५ ।। [२] - श्रीरिव दानवशत्रोर्यस्मिन् कुलांगना पत्युः । वर्णयति शौर्य-धैर्यप्रभृति गुरणानग्रतः सख्याः ॥ पत्या च विप्रलब्धा गातव्ये तं क्रमादुपालभते । 'श्रीगदित 'मिति मनीषिभिरुदाहृतोऽसौ पदाभिनयः ॥
॥५६॥
[१] सट्टक
विष्कम्भक तथा प्रवेशकसे रहित, प्राकृत-रहित केवल एक भाषामें [प्रर्थात् संस्कृत भाषा वाला प्राकृत से रहित और प्राकृत वाला संस्कृतसे रहित] बनाया गया, नाटिका के सदृश रूपक 'सट्टक' नामसे कहा जाता है ॥ १ ॥
साहित्य - वर्परकारने सट्टकका लक्षण निम्न प्रकार किया है-सट्टकं प्राकृताशेष पाठ्य स्यादप्रवेशकम् ।
न च विष्कम्भोऽप्यत्र प्रचुरश्चाद्भुतो रसः ॥ २७६ ॥ का जवनिकाख्याः स्युः स्यादन्यन्नाटिकासमम् ।
यथा कर्पूरमंजरी ।
साहित्यदर्पणकारके अनुसार सट्टकमें सारा पाठ्य भाग केवल प्राकृत भाषा में लिखा जाता है, किन्तु नाट्यदर्पणकार के अनुसार संस्कृत या प्राकृत किसी भी एक भाषामें लिखा जा सकता है । जो सट्टक प्राकृत भाषा में लिखा जाए वह संस्कृत भाषासे रहित हो और जो संस्कृत में लिखा जाए वह प्राकृत भाषासे रहित हो । यह नाट्यदर्पणकार के प्रप्राकृत संस्कृतया एकभाषया भवति' का अभिप्राय प्रतीत होता है ।
[२] श्रीगदित
इसमें भी जहाँ दानवशत्रु प्रर्थात् विष्णुकी पत्नी लक्ष्मीके समान कोई कुलांगना अपने पतिके शौर्य, धैर्य प्रादि गुगोंका सखीके सामने बखान करती है ।
और पतिके द्वारा ठगी जानेपर किसी गीतमें उसको उपालम्भ देती है उसको विद्वानोंने 'श्रीगति' कहा है । और वह [ पदार्थोंका अभिनय न होकर केवल ] पदाभिनयात्मक होता है ।। ५६ ।।
साहित्यदर्पणकारने 'श्रीगदित' का लक्षण निम्न प्रकार किया हैप्रख्यातवृत्तमेकांक प्रख्यातोदात्तनायकम् | प्रसिद्धनायिकं गर्भ-विमर्शाभ्यां विवर्जितम् ॥ २६३ ॥ भारतीवृत्तिबहुलं श्रीतिशब्देन संकुलम् । मतं श्रीगदितं नाम विद्वद्भिरूपरूपकम् ॥ २६४ ॥ श्रीरासीना श्रीगदिते गायेत् किंचित् पठेदपि । एकांको भारतीप्राय इति केचित् प्रचक्षते ॥ २६५ ॥
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