Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi

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Page 525
________________ ४०८ ] ... नाट्यदर्पणम [ का० २१८, सू० २६६ [११]-पाक्षिप्तिकाय वर्णो मात्राध्रुवकोऽप्यभग्नतालश्च । पद्धतिका छर्दनिका यत्र स्युस्तविह काव्यमिति ॥६५॥ [१२]-हरि-हर-भानु-भवानी-स्कन्द-प्रमथाधिपस्तुतिनिबद्धः । उद्धत-करणप्रायः स्त्रीवों वर्णनायुक्तः ॥ यदि चैव शुद्धवाचा शुद्धः संकोर्णया च संकीर्णः । सर्वाभिर्भाषाभिचित्रश्च विचेष्टितश्चित्रः ॥ प्रयमुद्धतोऽथ ललितो भारणो ललितोद्धतश्च सम्भवति । अर्थानामौद्धत्याल्लालित्यादुभयसत्त्वाच्च ॥६२॥ [१३]-यद् दुष्करमभिनेयं चित्रं चात्युटं च सम्भवति । तद् भारणके ऽभिनेयं युतमनुतालवितालश्च ॥ प्रायो हरिचरितयुतः स्वीकृतगाथादिवर्णमात्रश्च । सुकुमारतः प्रयोगाद् भारणोऽपि हि भारिणका भवति ॥६३॥ इत्यादीनि ॥ ६३॥ [११] काव्य जिसमें प्राक्षिप्तका, वर्ण, मात्रा, ध्रव और न टूटनेवाला ताल, पढतिका पौर वर्षनिका जिसमें हो उसको 'काव्य' कहते हैं ॥ ६५ ॥ [१२] भाण विष्ण, महादेव, सूर्य, पार्वती, स्कन्द और प्रमथाधिपको स्तुतिमें निगड किया गया, उक्त करणोंसे युक्त, स्त्री पात्रोंसे रहित, यदि शुद्ध संस्कृत वाणो द्वारा वर्णनायुक्त हो तो शुद्ध पौर यदि [संस्कृत तथा प्राकृतके] संकर [द्वारा किए गए वर्णन] से युक्त हो तो संकोरणं [भारण कहलानेवाला] सब प्रकारको भाषाओं और नाना प्रकारके व्यापारोंसे विचित्र यह भारण उद्धत [उसमें वरिणत विषयोंके उदत ललित तथा उभयात्मक होनेसे उसत, ललित तथा ललितोद्धत [भेवसे तीन प्रकारका हो सकता है। और उस भारणमें अभिनेय वस्तु अनुताल तथा वितालोंसे युक्त होता है ।। ६२॥ [१३] भाणिका अधिकतर विष्णुके चरितसे युक्त स्त्रियों द्वारा गाथा [छन्व], वर्ण और मात्रामोंकी रचना जिसमें की जाय इस प्रकारका भाग भी सुकुमारताके प्रयोग के [विखलानेके कारण] भारिणका कहलाता है ॥६३। साहित्यदर्पणकारने भारण तथा भारिणकाके लक्षण निम्न प्रकार किए हैं भाणिका श्लक्षणनेपथ्या मुख-निर्वहणान्विता । कैशिकी-भारतीवृत्तियुक्तकाङ्कविनिर्मिता . ॥ ३०८ ॥ उदात्तनायिका मन्दपुरुषात्राङ्गासप्तकम् । उपन्यासोऽथ विन्यासो विबोधः साध्वसं तथा ॥ ३०६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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