Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
View full book text
________________
३६० ]
नाट्यदर्पणम् [.का० १५३, स० २२६ पुंस्त्व-पण्डत्वाचाचित्यानुसारतो विधेय इति ।
यस्तु पञ्चमश्चित्राभिनयः प्रोक्तः सोऽप्यङ्गोपाङ्गकर्मविशेषरूपत्वादागिक एवान्तर्भवति ।
अभिनयद्वय-त्रय-चतुष्टयसन्निपातरूपः सामान्याभिनयः पुनर्वाचिकादिलक्षणेनैव चरितार्थ इति ॥ [५१] १५३ ॥
इति श्रीरामचन्द्र-गुणचन्द्रविरचितायां स्वोपज्ञनाट्यदर्पणविवृतौ
वृत्ति-रस-भाव-अमिनयविचारस्तृतीयो विवेकः ॥३॥ और जो पांचवें प्रकारका चित्राभिनय [नाव्यशास्त्रमें कहा गया है वह भी अंगों तथा उपांगोंके विशेष कर्म-रूप होनेसे प्रांगिक अभिनयके भीतर ही आ जाता है।।
दो, तीन या चार अभिनयोंका सन्निपात रूप जो सामान्याभिनय [नाट्यशास्त्रमें] कहा गया है वह भी वाचिक प्राविके लक्षणोंके अन्तर्गत ही हो जाता है। [११]१५३ ॥ श्री रामचन्द्र-गुणचन्द्र विरचित स्वनिर्मित माट्यदर्पणको विवृत्तिमें
वृत्ति-रस-भाव-अभिमय-विचार नामक ततीय विवेक समाप्त हुमा ॥३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org