Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi

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Page 512
________________ का० १६६, सू० २१३-२६४ ] चतुर्थो विवेकः [ ३६५ चैकस्मिन्नपि देशे भवन्ति । श्रादिशब्दाद ग्राम्य-नागरक-आरण्यक-विट्-देवकुलिकादिग्रहः। एवं विधपात्राणामानुरूप्येण यस्य तिर्यगादेर्या भणितिरीतिः प्रसिद्धा सा सा तस्य सम्यग वर्णनीया । येन स एवायं तिर्यगादिरिति ताद्र प्यावगमो भवति । इयं च देशगीश्च प्रायो अपभ्रशे निपततीति ॥ अथ भाषादेरन्यथात्वमपि भवतीत्याह[सूत्र २६३]-भाषा-प्रकृति-वृत्तादेः कार्यतः क्वापि लंघनम् ॥ [४२] १९५॥ भाषायाः संस्कृत-प्राकृतादेर्वाचः। प्रकृतेरुत्तम-मध्यमाधमरूपायाः । वृत्तस्य आचारस्य, इतिवृत्तस्य वा। आदिशब्दाद् धीरोद्धतवादिधर्माणां नेपथ्यादेर्वा केनचित् प्रयोजनेन लंघनमिति क्रमो विधेयः । एतच्च यथायथं क्वचित् किंचित् प्रदर्शितमेव । स्वयं वाभ्यूपमिति ॥ [४२] १६५ ॥ अथ रूपकेषु यो येन नाम्ना व्यवहर्तव्यस्तस्य तदाह[सूत्र २६४] -प्रार्येति शब्धते पत्नी लिगिनी ब्राह्मणी द्विजैः । अम्बापि जननी-वृद्ध पूज्या तु भवतीत्यपि ॥ [४३] १६६ ॥ और वनमें रहने वाले तथा विट, देवकुलिका प्राविका ग्रहण होता है । इस प्रकारके पात्रोंकी भाषा मानुरूप्यके अनुसार अर्थात् जिस तिर्यगादिकी जो भाषा लोकमें प्रसिद्ध है उसको उसके साथ भली प्रकारसे प्रयोग करना चाहिए जिससे यह वही तिरंगादि है यह बात ठीक तरह से प्रतीत हो सके। यह [ तियंगादिको भाषा] और देश-भाषा दोनों प्रायः अपभ्रं शमें प्राती हैं। प्रब प्रागे भाषा मादिमें परिवर्तन भी हो सकता है यह बात दिखलाते हैं-. [सूत्र २६३]-भाषा, प्रकृति, वृत्त प्रर्यात प्राचार या कथावस्तु प्राविका कार्यवश कहीं उल्लंघन भी किया जा सकता है। [४२] १९५। भाषा अर्थात् संस्कृत और प्राकृत प्रादि वाणीका । प्रकृति पर्यात उत्तम, मध्यम, अषम रूप प्रकृतिका । वृत्त प्रति प्राचरणका प्रथवा कथावस्तुका । मादि शम्बसे धीरोदात्तवादि धर्मों का प्रथवा वेष-भूषाविका किसी विशेष प्रयोजनसे लडन किया जा सकता है इस कारका [कम प्रर्थात् ] अन्वय करना चाहिए। इस बातका कहीं-कहीं कुछ वर्णन किया आ पुका है। अथवा स्वयं समझ लेना चाहिए ॥ [४२] १९५॥ ___ प्रब रूपकोंमें जिसको जिस नामसे पुकारा जाना चाहिए उसके उस नाम माविको पतलाते हैं [सूत्र २६४] -ब्राह्मणोंके द्वारा पत्नी, परिवाजिका पौर ब्राह्मणी 'पार्या' इस नामसे कही जाती है। माता और वृद्धा स्त्री [भार्या शम्बसे तो कही हो जाती है किंतु उसके प्रतिरिक्त) अम्बा' भी कही जाती है। पूज्या स्त्री [भी प्रार्या तो कही हो जाती है उसके प्रतिरिक्त] 'भवती' इस पबसे भी कही जाती है। [४३] १९६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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