Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi

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Page 514
________________ का० १६८, सू० २६५ ] चतुर्थो विवेकः । [ ३६७ अन्यदप्याह-- [सूत्र २६५]-महाराजो नृपः सर्वस्त्वार्यपुत्रेति यौवने । पुंसा भद्रेति भोक्तव्या प्रियेति दयिताथवा । ॥ [४५] १६८ ॥ पिता-पुत्राभिधायोगैमुख्या देव्यपि राजभिः । विदूषकेरण भवती राजी-चेट्यो नृपस्त्रियः ॥ ॥[४६] १६६ ॥ भट्टिनी स्वामिनी देवीत्येवं सर्वाः परिच्छदैः । वेश्या ऽज्जुकेति वृद्धा तु साऽत्ता तुल्या स्त्रिया हला ॥ ॥[४७] २०० ॥ 'पत्त्या' इति 'जरन्' इति चानुवर्तते । पत्न्या जरन्नृपो 'महाराज' इति । सर्वम्तु नृपोऽन्यश्च पतिर्योवने वर्तमान 'आर्यपुत्र' इति पत्न्या कीर्त्यते। आर्यपुत्र इति' हि श्वशुरेण व्यपदेशो यौवनस्य शृङ्गारोचितत्वख्यापनार्थः । यौवनादन्यत्र तु 'आय [इसी विषय में प्रागे] और भी कहते हैं [सूत्र २६५]- [पत्नी के द्वारा वृद्ध] राजाको महाराज कहकर सम्बोधन करना चाहिए] सब राजा और अन्य [सामान्य रूपसे राजा तथा] पति को पत्नी के द्वारा यौवन कालमें प्रार्यपुत्र [नामसे सम्बोषित किया जाता है] । भोक्तम्या स्त्रीको पुरुष [प्रथम परिचयके साथ ] भद्रा [ कहकर ], और दयिता अर्थात् भार्याको या प्रिय, [कहकर सम्बोधन करें] । [४५]१९८। अथवा [ दयिता प्रति अपनी पत्नोको उसके ] पिता या पुत्रों के नामको जोड़कर [रामचन्द्रकी माता सायवा सोमशर्माकी पुत्री इस रूपमें सम्बोधन किया जाता है] । राजामों के द्वारा मुख्या अर्थात् पटरानीको [प्रियाके अतिरिक्त देवी भी कहा जाता है । विदूषकके द्वारा रानी पोर चेटी [दोनोंशो भवती पवसे सम्बोषित किया जाना चाहिए । [४६] १६६। सारी रानियों को परिजनोंके द्वारा भट्टिनी, स्वामिनी, देवो इस प्रकार सम्बोधन किया जाना चाहिए [इसमें 'नृपस्त्रियः' पद १९वें श्लोकके अन्तमें पाया है उसका अन्वय इस २००वें श्लोकमें होता है । [यौवनवती] वेश्याको [उसके सेवकवर्ग] 'अज्जुका' [कहकर सम्बोधन करते हैं] और उसी [वेश्या] के वृद्ध होनेपर , अता' पबसे उसको सम्बोधित किया जाता है। पोर बराबर थाली स्त्रियां एक-दूसरेको 'हला' कहकर सम्बोधन करती हैं । [४७]२००। पन्या' और 'जर' ये दोनों पद [१९७ संख्यावाली कारिफासे] अनुवृत्ति द्वारा माते हैं। इसलिए पस्नीके द्वारा वृद्ध राजाको महाराज [कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह अभिप्राय है] । सामान्य रूपसे सारे राजाओंको [महाराजके अतिरिक्त] प्रार्यपुत्र [भी कहा जाता है] यौवनावस्था में वर्तमान पतिको [पत्नी] मार्यपुत्र पदसे कहती है । 'प्रार्यपुत्र' यह नाम श्वसुरके सम्बन्धसे बना है। [और यौवनकालमें इस शब्दका प्रयोग] पौवनके शृङ्गारो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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