Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम् [ का० १६६, सू० २५१-५२ अथ विदूषकादीनां प्रकृति केषाशिल्लक्षणं चाह[सूत्र २५१]-नीचा विदूषक-क्लीब-शकार-विट-किङ्कराः । हास्यायाद्यो नृपे श्यालः शकारस्त्वेकविद् विटः ॥
. [१४]. १६७ ।। 'क्लीबो' नपुंसकः । एषां नीचत्वं नैसर्गिकम् । स्वामिचित्तानुरोधादोपाधिक तु मध्यमत्वमपि । तत्राद्यो विदूषको हास्यनिमित्तं भवति । हास्यं चास्य अंग-नेपथ्य-बचोविकारात् त्रेधा। तत्रांगहास्यं खलति-खञ्ज-दन्तुर-विकृताननत्वादिना। नेपथ्यहास्यमत्यायताम्बरत्वोल्लोकित-विलोकित-गमनादिना। वचोहास्यमसम्बद्धानर्थकाश्लीलभाषणादिना भवति । 'नृपे' नृपस्य सम्बन्धी 'श्यालः' पत्नीभ्राता । नीचत्वादेव चायं हीनजातिः । 'हास्याय' इति अत्रापि सम्बन्धान्न सर्वो राजपुत्रादिनपश्यालः शकार', किन्तर्हि विकृतहाम्यहेतुः परिचारक एव । एक राजोपयोगि किश्चिद गीतादिषु मध्ये वेत्ति इति एकविद्, विटो ज्ञेय इति ।। [१४] १६७ ॥
____ अथ धीरोद्धतादीनां नेतृ णां प्रत्येक विभिन्नान् विदूषकानाह[सूत्र २५२]-स्निग्धा धीरोद्धतादीनां ययौचित्यं वियोगिनाम् । लिंगी द्विजो राजजीवी शिष्यश्चैते विदूषकाः ॥
[१५] १६८ ॥ अब प्रागे विदूषक प्राविको प्रकृति और उनमेंसे किन्हींके लक्षण कहते हैं
[सूत्र १६६]-विदूषक नपुंसक शकार विट और भृत्य प्रादि नीच [पात्र होते हैं] उनमेंसे पहला [अर्थात् विदूषक] हास्यके [उत्पन्न करने] केलिए होता है। राजाका [नीच जातीय] साला 'शकार' कहलाता है। [राजाके उपयोगी नृत्य गीतादि] किसी एक बातको जानने वाला 'विट' कहलाता है। [१४] १६७। ।
___ 'क्लीब' अर्थात् नपुसक। इनका नीचत्व स्वाभाविक होता है। किन्तु स्वामीके चित्तके अनुसार औपाधिक रूपसे मध्यमत्व भी हो सकता है। उनमेंसे पहला अर्थात् विदूषक [सबके लिए हास्यजनक होता है । इसका हास्य (१) अंम, (२) वेष-भूषा तथा (३) वचनोंसे | उत्पन्न] तीन प्रकारका होता है। जैसे गंजापन, लंगड़ापन, बाहर निकलते हुए या ऊपर बैठे हुए दांतों और विकृत मुख प्रादिसे प्रङ्ग-हास्य होता हैं । अत्यन्त लम्बे-चौड़े अस्त्रोंसे ऊपर ताकने, इधर-उधर देखने और गमन प्रादिके द्वारा नेपथ्यहास्य होता है। और असंबद्ध अनर्थक तथा अलील भाषण प्रादिके द्वारा वचन-मूलक हास्य उत्पन्न होता है । 'नृपे' अर्थात् राजाका सम्बन्धी । 'श्याल' अर्थात् पत्नीका भाई । नीच [पात्रोंमें परिगणित] होनेके कारण ही वह नीच जातिका होता है। 'हस्याय' इस पदका यहाँ [श्यालके साथ भी संबंध होनेसे राजाके राजपुत्र प्रादि (उत्तमजातीय सारे साले 'शकार' नहीं होते हैं अपितु विकृति हास्यके कारणभूत [नीचजातीय] परिचारक [ रूपसाला ] ही ['शकार' कहलाता है । विटके लक्षण में पाए हुए 'एकवित्' पदका अर्थ करते हैं] गीतादिमेंसे राजाके उपयोगी किसी एक को जानता है इसलिए 'एकवित्' विट कहलाता है ।। [१४ | १६७ ॥
अब प्रागे धीरोद्धत मादि नायकों से प्रत्येकके अलग-अलग विदूषकों [के लक्षणोंको
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