Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi

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Page 495
________________ ३७८ ] नाट्यदपणम [ का० १७०, सू० २५२-५३ अथ शुद्धान्तोचित परिवारमाह[सू० २५४]-शुद्धान्ते कारुको द्वाःस्थः कंचुकी शुभकर्मरिण । वर्षवरस्तु रक्षायां, निर्मुण्डः प्रेषणे स्त्रियाः ॥ कार्याख्याने प्रतीहारी, रक्षा-स्वस्त्योर्महत्तरा । पूर्वतिविधौ वृद्धा, चित्रादौ शिल्पकारिका ॥ . [१७] १७० ॥ [१८] १७१ ।। शुद्धान्तमन्तःपुरं, तस्मिन्नाचारवान आर्यो हीनसत्वः पुमान 'कारकः' । स द्वारपालो दक्षो नपुंसकः । 'कंचुकी' अदृष्यजातिः स्त्रीग्वभावः । तुन्छसत्वो विनीतश्च 'वर्षवरः'। अतिनिःसत्त्वोऽकर्म करश्च निमुण्डः' । स च न्त्रीणां दास्यादीनां प्रेपणकारकः । 'रक्षा' भूत्यादिकर्म । 'स्वस्ति'मङ्गलवाचनम । 'चित्र' पत्र-वल्लयादि । 'आदि'शब्दाद् गन्ध-पुष्प-शिल्प-शय्या आसन-च्छत्र-मण्डन संवाहन-श्राक्रीड व्यज नादिग्रह इति ॥ [१७-१८) १७.१.५ ॥ अथ नायिका लक्षयति---- [सू० २५५] -नायिका कुलजा दिव्या क्षत्रिया पण्यकामिनी । अन्तिमा ललितोदात्ता पूर्वोदात्ता त्रिधा परे ॥ [१६] १७२॥ तीन प्रकारके होते हैं ।।१७] १६६ ।।. प्रत्र मागे अंतःपुरके उपयोगी परिचारक-या का वर्णन करते हैं--- , सूत्र २५४] --अन्तःपुर में (१) कारुक, द्वारपास, कंचुकी शुभकाममें, (२) रक्षामें वर्षवर, (३) स्त्रियोंके प्रेषण प्रादिमें निर्मुण्ड, ये कार्यकर्ता होते हैं पुरुष । [१७] १७० । ___ कार्यको सूचना देने में प्रतीहारी. भभूत आदि देने और स्वस्तिवाचनमें मेहतरानी, पूर्व-परम्परा विधिके पालनमें वृद्धा और चित्रादि रचनामें शिल्पकारिका | ये स्त्रिया कार्यकत्रों होती हैं। [१६] १७१॥ शुद्धान्तका अर्थ अन्तःपुर है। उसमे सदाचारी, श्रेष्ठ और पौरुषहीन पुरुष 'कारुक' [विशेष कार्यकता होना चाहिए। द्वारगाल चतुर नमक होना चाहिए। उतम जाति का और स्त्रीस्वभाव वाला [पुरुष कबुको होना चाहिए। न्यून पौरुष वाला और विनीत (पुरुष वर्षवर [अन्त पुर-रक्षक होना चाहिए। अत्यन्त पौरुषहीन और अकर्मण्य निमण्ड | होता है। वह दासी. प्राधि स्त्रियों को इधर-उधर भेजनेवाला होता है। [कारिकाके रक्षास्वस्त्योमहत्तरा भाग में प्रयुक्त 'रक्षा' पद भभूत प्रादि देने के प्रथमें प्रयुक्त है। स्वस्ति अर्थात् मंगल वाचन । चित्र अर्थात् पत्रवल्ली प्रादि | को रचना । प्रादि शब्दसे गन्ध-पुष्प, शिल्पशय्या-मासन-छत्र, मण्डन संवाहन, खिलौना और पंखे प्रादिका प्रहरप होता है ।। १७०-१७१ ॥ प्रब मागे नायिकाके लक्षणको कहते हैं ... सूत्र २५५] कुलजा दिव्या क्षत्रिया और वेश्या [चार प्रकारको नायिका होती है। उनमेंसे अन्तिम प्रर्थात् वेश्या नायिका ललितोदात्त हो] होती है । और पहली [अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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