Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi

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Page 501
________________ ३८४ ] नाट्यदर्पणम् [ का० १७६, सू० २६८-६६ अथाभिसारिका --- [ सूत्र २६८ ] - सरन्ती सारयन्ती वा रिरंसुरभिसारिका ॥ [२६] १७६॥ सरन्ती स्वयं तस्य पार्श्वे, सारयन्ती वा तं प्रियमात्मसमीपे । रिरंसुः सुरतार्थिनी नायिका अभिसारिका । अत्र नायिकायाः प्रियसन्निधौ गमनमिति भेदः इति || [२६] १७६ ॥ 'अथ स्त्रीणां यौवनस्थान धर्मानाह [ सूत्र २६६ ] - भावाद्या यौवने स्त्रीरणामलङ्कारास्त्रयोऽङ्गजाः । दश स्वाभाविकाश्चैते क्रियारूपास्त्रयोदश ।। [२७] १८० ॥ सति भोगे गुरगाः सप्तायत्नजाश्च स्वभावजाः । नावश्यम्भाविनोऽथैषा, विशतिः स्त्रीषु मुख्यतः ॥ [ २८ ] १८१ ॥ यौवने उत्तमप्रकृतीनां च, वनितानां च भाव-हावादयोऽलंकाराः कटक-केयूरादिवद् वपुर्विभूषाहेतवः प्रादुर्भवन्ति । बाल्येऽपि किंचिदुन्मीलन्ति । वार्धके तु प्राचुर्ये नश्यन्ति । एते च यौवने स्त्रीणां प्राधान्यतोऽलंकाराः । पुंसां तूत्साहादयो मुख्यतो अब मागे 'अभिसारिका' [नायिकाका लक्षरण करते हैं ] - [ सूत्र २६८ ] - |- रमण करनेकी इच्छा से स्वयं [प्रियके पास] जाने वाली प्रथवा प्रिय को अपने पास बुलाने वाली नायिका अभिसारिका कहलाती है । [२६] १७६ । 'सरन्ती' अर्थात् स्वयं उसके पास जाती हुई प्रथवा 'सारयन्ती' प्रर्थात् उस प्रियको अपने पास बुलाने वाली । रिरंसु अर्थात् सुरताभिलाषिणी नायिका अभिसारिका कहलाती है । इसमें नायिका स्वयं प्रियके पास जाती है [ और स्वाधीनभर्तृकामें प्रिय नायिका के पास उपस्थित रहता है] यह [स्वाधीनभर्तृकासे इसका ] भेद है। [२६] १७६ ॥ aurगे स्त्रियोंके [अर्थात् नायिकानोंके] यौवनमें होने वाले धर्मोको कहते हैं Jain Education International [ सूत्र २६६ ] - योवनकालमें स्त्रियोंके भाव आदि तीन आंगिक और दस स्वाभा विक प्रलंकार होते हैं। ये तेरहों [ प्रलङ्कार द्रव्य रूप न होकर ] क्रिया रूप होते हैं । [२७] १८० । [प्रियका] सम्भोग होनेपर बिना प्रयत्नके उत्पन्न होने वाले सात स्वाभाविक गुण होते हैं जो अवश्यम्भावी नहीं होते हैं। ये बीस [१३+७= २० ] गुण मुख्य रूपसे स्त्रियों में रहते हैं। [२८] १८१ । यौवन में उत्तम प्रकृति वाले [पुरुषों] और स्त्रियों में भाव हाव भावि अलङ्कार कटककेयूर प्राविके समान शरीरकी शोभाके जनक उत्पन्न हो जाते है । बाल्यावस्थामें भी कुछकुछ उदित होते हैं, और वृद्धावस्था में अधिकांश प्रायः नष्ट हो जाते हैं। यौवनमें मे स्त्रियोंके मुख्य रूपसे श्रलङ्कार होते हैं। पुरुषोंके तो उत्साहादि मुख्य रूपसे अलङ्कार होते हैं। इसीलिए उद्धतादि नायकोंके साथ धीरत्व विशेषण कहा गया है। पुरुषोंमें भावादि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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