Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० १४८, सू० २१८-२० ] तृतीयो विवेकः
अथ ते प्रत्येकशो लक्ष्यन्ते । तत्र ( २ ) वेपथुः - [ सूत्र २१८ ] - भयादेर्वेपथुर्गात्रस्पन्दो वागादिविक्रियः ।
आदिशब्दाद रोग-हर्ष-शीत- रोष-प्रियस्पर्शादेविभावस्य ग्रहः । स्पन्दः किनिचचलनम् । वागादेरादिशब्दाद गति चेष्टादेविक्रिया यस्मात् । इत्यनुभावकथनम् ॥ (२) अथ स्तम्भ: --
[ सूत्र २१६ ] -- यत्नेऽप्यङ्गाक्रिया स्तम्भो हर्षादिः, हा ! विषादवात् ॥ ॥ [ ४६] १४८ ॥ हस्त पादादीनामन्तः परिस्पन्देऽप्य क्रिया चलनाभावः स्तम्भः । श्रादिशब्दाद् विस्मय-भय-मद-रोगादेर्विभावस्य ग्रह इति || [ ४६] १४८ ॥ (३) श्रथ रोमाञ्चः
[ सूत्र २२० ] - रोमाञ्चः प्रियदृष्टचादेः रोगहर्षोऽङ्गमार्जनैः ।
दिशब्दाद व्याधि-शीत-क्रोध- स्पर्शादेविभावस्य ग्रहः । बहुवचनादङ्गमेदुरप्रमुख नेत्रविकास-दन्तवीणावादनादिभिरभिनेतव्यः ॥
रसोंके स्थायिभाव तथा व्यभिचारिभावोंके और अनुभावोंके भी यथायोग्य सहस्रों प्रनुभाव हो सकते हैं ।। [४५] १४७ ॥
(१) श्रव उन अनुभावों में प्रत्येकका अलग-अलग लक्षण करते हैं । उनमें सबसे पहले वेपथुः [का लक्षरण करते हैं ] -
[ सूत्र २१८] - 1 - भय श्रादिके कारण शरीरका किडिचत् विचलित हो जाना 'वेपथु' कहलाता है और उससे वारणी श्रादिमें विकार या जाता है ।
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आदि शब्दसे रोग, हर्ष, शीत, क्रोध, प्रियके स्पर्श श्रादि विभावोंका ग्रहण होता है । स्पन्द अर्थात् तनिकसा हिल जाना। 'वागादे:' इसमें आदि शब्द से गति और चेष्टा श्रादिमें जिससे विकार श्रा जाता है । यह [ वेपथुः ] ग्रनुभावका कथन किया है ।
(२) स्तम्भ [ का लक्षरण करते हैं ]
[सूत्र २१९] - हर्ष प्रादिके कारण यत्न करनेपर भी ब्रोंकी क्रियाका न होना 'रम्भ' कहलाता है । और उसमें 'हाय' आदि शब्दोंसे विषाद प्रकट होता है। [४६ ] १४८० अङ्गका श्रर्थाद हाथ-पैर श्रादिके भीतर गति होनेपर भी बाहर उनका न चल सकना स्तम्भ कहलाता है । प्रादि शब्दसे विस्मय, भय, मद और रोगावि [ श्रन्य कारणों] विभाषों का ग्रहण होता है । [४६ ] १४८ ॥
(३) श्रत्र रोमाञ्च [का लक्षण करते हैं ]
[सूत्र २२०] - प्रियके देखने श्रादिसे उत्पन्न होनेवाला रोमहर्ष 'रोमा' कहलाता है । प्रङ्ग सहलाने के द्वारा उसका अभिनय किया जाता है।
श्रादि शब्द से व्याधि, शीत, क्रोध, स्पर्श आदि विभावोंका ग्रहण होता है। बहुवचन से ङ्गके फूल जाने, प्रांयोंके खिल जाने और दन्तवीरगाके बजाने आदि अनुभावद्वारा उसका अभिनय करना चाहिए ।
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