Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
View full book text
________________
का० १०७, सू० १६१ ] तृतीयो नेवेकः
... [ २८७ अथ कैशिकी[सूत्र १६१] -कैशिकी हास्य-शृङ्गार-नाट्य-नर्मभिदात्मिका।
अतिशायिनः केशाः सन्त्यासामिति केशिकाः स्त्रियः । 'स्तनकेशवतीत्वं हि स्त्रीणां लक्षणम'। तत्प्रधानत्वात् तासामिए कैशिकी । हास्य-शृङ्गाराभ्यां स्त्रीबाहुल्यविचित्रप्रकारेनेपथ्य-कामव्यवहाराणां सद्भावमाह । नाट्यं नृत्त-गीत-वादित्राणि । अग्राम्य इष्टजनावर्जनरूपो वाग-वेष-चेष्टाभिः परिहासो नर्म । वाचा यथा
"पत्युः शिरश्चन्द्रकलामनेन स्पृशेति सख्या परिहासपूर्वम् ।
सा रञ्जयित्वा चरणौ कृताशीर्माल्येन तां निर्वचनं जघान ॥" यथा वा सत्यहरिश्चन्द्र--
. "राजा-[विहम्य ] विहङ्गराज ! निःशेषवेश्याचक्रवर्तिनीमेनां लम्बस्तनीमुपश्लोकय ।
शुकः---पुण्यप्रागल्भ्यलभ्याय वेश्यापण्याय मङ्गलम् ।
__यत्र प्रतीपाः शास्त्रम्य, कामादर्थप्रसूतयः ॥" पर भी] न छोड़ने से, नए कार्योंका [भो] स्वीकार कर लेनेसे, संग्रामादिके लिए दूसरोंको उत्साहित करनेसे, साम आदिके प्रयोग अथवा देवाविवश शत्रु-समुदायमें भेद डालनेसे और इसी प्रकारके अन्य बहुतसे प्रकारोंसे लक्षित हो सकता है ॥[५]१०७॥ ३ कैशिकी वृत्तिका निरूपण
अब कैशिको [वृत्तिका लक्षण करते हैं]--
[सूत्र १६१]-हास्य, शृङ्गार [ नृत्य, गीत प्रादि रूप ] नाट्य तथा [ नर्म अर्थात् शिष्ट परिहास प्रादिके भेदोंसे युक्त कैशिकी [इति होती है।
अतिशय युक्त केश जिनके हों वे स्त्रियां कशिका हुई [अर्थात् कशिकी वृतिकी उत्पति केश शब्दसे हुई है । लम्बे केशोंसे युक्त होने के कारण स्त्रीको 'केशिका' कहा जाता है] क्योंकि 'स्तनकेशवती स्त्री' यह स्त्रीका लक्षण है। उनका प्राधान्य होनेसे उनकी यह वृत्ति 'कैशिकी' कहलाती है । उसमें हास्य और शृङ्गार शब्दोंसे स्त्रीजनोंकी अधिकता, नाना प्रकारके वेष-विन्यास, तथा कामभ्यवहारोंको उपस्थिति सूचित की है । 'नाट्य' से नृत्य, गीत, बायका प्रहरण होता है । इष्टजनोंको आकर्षित करनेवाला, वाणी, धेष तथा चेष्टा आदिकेद्वारा किया जानेवाला शिष्ट [अग्राम्य] परिहास नर्म [कहलाता है। वाणोके द्वारा [नर्मका उदाहरण] जैसे---
"पैरोंमें महावर लगा चुकनेपर सखीके द्वारा परिहासपूर्वक इस [चरण से पति [शिव] के सिरपर स्थिति [सपत्नी रूप] चन्द्रकलाका स्पर्श करना इस प्रकार आशीर्वाद किएजाने पर बिना उत्तर दिए हुए ही उसने [अर्थात् पार्वतीने] उस [सखो] को मालासे मार दिया।"
अथवा जैसे सत्पहरिश्चन्द्र में वाचिक नर्मका उदाहरण निम्न प्रकार है].-- ___ "राजा---[हंसकर हे विहङ्गराज [मन्त्रिन शुकदेव समस्त वेश्याओंको चक्रवर्तिनी इस लम्बस्तनीकी प्रशंसा तो करो।
शुक-पुण्यसम्भारसे प्राप्त होनेवाले वेश्या-व्यापारका भला हो जिसमें शास्त्रीय विधानके विपरीत, कामसे अर्थको प्राप्ति होती है [ शास्त्र में तो अर्थसे कामको प्राप्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org