Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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द
[ का० १२५, सू० १७६
अत्रोद्दीपनविभावैः कुरबका दिभिरुद्दीप्यमानः शृङ्गारो विशेषतः करुणं स्वतन्त्रमङ्गिनं द्विषत्स्त्रीणां पोषयति ।
यथा वा
३२२ ]
"प्रयं स रशनोत्कर्षी पीनस्तनविमर्दनः । नाभ्युरूजघनस्पर्शी नीवीविस्रंसनः करः ॥
भूरिश्रवसः समरभुवि पतितबाहुदर्शनेन तत्प्रियाणां शृङ्गारः स्मर्यमाणः
करुणं पोषयति ।
मुख्यस्यायत्तौ यथा----
" क्षिप्तो हस्तावलग्नः प्रसभमभिहतोऽप्याददानोंऽशुकांतं, गृह्णन् केशेष्वपास्तश्चरणनिपतितो नेक्षितः सम्भ्रमेण । आलिङ्गन् योऽवधूतस्त्रिपुरयुवतिभिः साश्रुनेत्रोत्पलाभिः, कामीवार्द्रापराधः स दहतु दुरितं शान्भवो वः शराग्निः ॥” अत्र त्रिपुररिपुप्रभावातिशस्य करुण - शृङ्गारावङ्गभूतौ । परस्परविरोधेऽपि चान्यमुखप्रेक्षितपारतन्त्र्यदुःखाभिघातेन स्वात्मपुष्टिमलभमानयो नृपसमीपस्थित - श्राततायिद्वयवत् कुतः करुण-शृ' गारयोर्घात्य - घातकभावः इति ?
इसमें कुeos प्रादि रूप उद्दीपन विभावोंके द्वारा उद्दीप्त क्रिया जाने वाला शत्रु स्त्रियोंका शृङ्गार रस उनके भीतर रहनेवाले प्रधान और स्वतन्त्र करुण रसको पुष्ट करता है ।
प्रथवा जैसे
[हमारी रशना अर्थात् ] तगड़ीको हटाने वाला, पोन स्तनोंका मर्दन करने वाला तथा नाभि जंघाओं और नितम्बों का स्पर्श करने वाला तथा नारेको खोलने वाला [हमारे प्रियतम भूरिश्रवाका ] यह वही [ प्रानन्ददायक ] हाथ है ।
इसमें समरभूमिमें पड़े हुए, भूरिश्रवाके हाथको देखकर उसको पत्नियोंका स्मयं मारण शृङ्गार रस [भूरिश्रवाकी मृत्युके बाद वर्तमान ] करुण रसका परिपोषरण कर रहा है। [इसलिए श्रृंगार करुण रसका अंग होनेसे उसका विरोधी नहीं है] ।
[[किसी तीसरे ] मुख्य रसके अधीन रहने वाले [ दो विरोधी रसोंके अविरोधका उदाहरण] । जैसे—
शिवाजी द्वारा किए गए त्रिपुरदाहके समय त्रिपुरकी स्त्रियोंको दुर्दशाका वर्णन करते हुए कविने इस श्लोक में अग्निका कामी के साथ सादृश्य इस प्रकार दिखलाया है[ श्रार्द्रापराध कामीके समान स्त्रियोंका ] हाथ पकड़नेपर भटक दिया गया, बलात् हटाए जानेपर भी वस्त्रोंको ग्रहण करनेवाला, केशोंको कृते समय दूर हटाया गया, पैरोंमें गिरनेपर भी [ अग्नि पक्षमें] भयके कारण [ और कामी पक्षमें सम्भ्रम अर्थात् आदरपूर्वक ] न देखा गया, और [परस्त्री गमन प्रावि रूप तुरन्त किए हुए अपराधके कारण] ताजे श्रपराध वाले कानके समान आँखोंमें प्रांसु भरे हुए त्रिपुरकी युवतियोंने प्रालिंगन करते हुए जिस [अग्नि] को झटक दिया है इस प्रकारका शिवजीके मारणोंका श्रग्नि तुम्हारे दुःखों या पापों को नाश करे ।
इसमें करुण और श्रृंगार [दोनों परस्पर विरोधी रस ] त्रिपुरारि [शिवजी ] के प्रतापा
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