Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० १३३, सू० १६१ ]
(७) अथ श्रमः -
[ सूत्र १८६ ] - श्रमो रतादिभिः सादः स्वेद - श्वासादिकाररणम् । दिशब्दादध्वगति - व्यायामादेर्विभावस्य ग्रहः । सादोऽङ्गादीनां शोषः । द्वितीयादिशब्दान्मुखविकूणन विजृम्भण्- अंगमर्दन- मन्दपदोत्क्षेपादेरनुभावस्य
ग्रह
इति ॥
तृतीयो विवेकः
(८) अथ चिन्ता -
[१०] --- प्राधिश्चिन्ता प्रियानाप्तेः शून्यता-श्वास- कार्श्ययुक्
॥ [३१] १३३ ॥
आधिर्मानसी पीडा । प्रियस्येष्टस्याप्राप्तिः प्रियाप्राप्तिर्वा प्रियानाप्तिः । शून्यता विकलेन्द्रियता । उपलक्षणत्वादेकाग्र दृष्टित्व- स्मृत्यादयोऽप्यनुभावा इति ।। [३१] १३३ ||
[ ३३५
(६) अथ चापलम्
[ सूत्र १६१] - चापलं साहसं राग-द्वेषादेः स्वैरितादिमत् ।
साहसमविमृश्यकारिता । आदिशब्दाज्जाड्या देहः । स्वैरित्वं स्वच्छन्दाचारः । श्रादिशब्दाद् वाक्पारुष्य ताडन-बध-बन्धादेरनुभावस्य ग्रह इति ।
(७) श्रब श्रम [रूप व्यभिचारिभावका लक्षरण करते हैं]
[ सूत्र १८९ ] - रमरण करने प्रादिके काररण उत्पन्न थकावट 'भ्रम' कहलाता है । और वह स्वेद तथा श्वासादिका कारण होता है ।
[रतादिमें] 'आदि' शब्दसे मार्गगमन और व्यायाम प्रादि विभावोंका ग्रहण होता है । 'साद:' अर्थात् शरीरादिका शोष । [श्वासादिकारणम् में थाए हुए ] दूसरे 'आदि' शब्दसे मुँह सिकुड़ना, जम्भाई, अङ्गोंकी मलिनता, धीरे-धीरे पैर उठाना प्रादि अनुभावोंका ग्रहण होता है ।
(८) अब चिन्ता [ रूप व्यभिचारिभावका लक्षण करते हैं]
[ सूत्र १६० ] – इष्ट वस्तुको प्राप्ति न होने [अथवा अनिष्टकी प्राप्ति होने ] से उत्पन्न मानसी पीड़ाको 'चिन्ता' कहते हैं। वह इन्द्रियोंको विकलता श्वास और कृशता धाविको जननी होती है । [३१] १३३ ॥
'प्राषि' श्रर्थात् मानसिक पीड़ा । प्रिय अर्थात् इष्टकी प्रप्राप्ति अथवा प्रप्रियको प्राप्ति [दोनोंसे ही चिन्ता उत्पन्न होती है ] । शून्यताका अर्थ इन्द्रियोंको विकलता है । और उपलक्षरणभूत होने से वह उससे टकटकी लगाना, याद आना आदि अनुभावोंका भी ग्रहरण होता है ।। [३१] १३३ ॥
(६) अब चपलता नामक व्यभिचारिभावका लक्षरण करते हैं ] -
[ सूत्र १६१] - रागद्वेषादिके [ प्रतिवेकके] कारण बिना विचारे जो कार्य करने लगना है वह [ श्रविमृश्यकारिता रूप साहस ] 'चपलता' कहलाता है । और वह स्वेच्छाचरिता भाविकी जननी होती है ।
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'साहस' अर्थात् बिना सोचे-समझे कार्य करना । [ पहले] 'आदि' शब्दसे जनता आविका प्रहरण होता है। स्वच्छन्द प्राचरण 'स्वरिता' है । [ दूसरे ] 'भवि' शक्यसे कठोर
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