Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० १३५, सू० १६४-६५ ] तृतीयो विवेकः
नवनवोल्लेखशालिनी प्रज्ञा प्रतिभानम् । शास्त्र शास्त्रविषयं चिन्तनम् । तर्को विधि-निषेधविषयौ सम्भावनाप्रत्ययौ अन्वय-व्यतिरेकात्ययो वा। भ्रांतिः संशयो विपर्ययो वा । श्रादिशब्दादुपदेशादिग्रहः इति ।।
(१२) अथ व्याधिः[सूत्र १९४]-दोषेभ्योऽङ्ग-मनःक्लेषो व्याधिः स्तनित-कम्पवान्
॥ [३३] १३५ ॥ दोषाः कफ-वात-पित्त-सन्निपातादयः । स्तनितमातेस्वरः। उपलक्षणान्मुखशोषदन्तवीणावादन-शीताभिलाष-विक्षिप्तांगता-संतापादयोऽप्यनुभावा गृह्यन्ते इति ॥ [३३] १३५॥
(१३) अथ स्मृतिः -- [सूत्र १९५]-दृष्टाभासः स्मृतिस्तुल्यदृष्ट्यादे न्नतिक्रिया ।
दृष्टाभासः पूर्व दृष्टमिति ज्ञानम् । तुल्यदृष्टिः सदृशदर्शनम्। आदिशब्दात् सराभवण-चिन्ता-संस्कार रात्रिपश्चाद्भागनिद्रोच्छेद -प्रणिधान-पुनःपुनःपरिशीलनपूर्व दर्शनपाटवादेविभावस्य ग्रहः । अन्नतेभ्रुव ऊर्ध्वक्षेपस्य । उपलक्षणाच्छिर कम्पनावलोकनादेश्चानुभावस्य क्रिया निष्पत्तिर्यस्याः, सा तथेति ॥
मई-नई सूझ देने वाली बुलि 'प्रतिभा' कहलाती है। शास्त्रसे शास्त्र-विषयक चिन्तन [का पहरण होता है। किसी एक पक्षकी] विधि और निवेष से उत्पन्न होने वाले विविध सम्भावना शान अथवा अन्वय तथा व्यतिरेकको तर्क' कहते हैं । 'भ्रांति' शम्दसे संशय अथवा विपर्यय [बोनों का ग्रहण होता है । प्रादि शब्दसे उपदेश प्रादिका ग्रहण होता है।
(१२) अब व्याधि [रूप व्यभिचारिभावका लक्षण करते हैं]
सूत्र १९४]-[वात-पित्तावि रूप] दोषोंसे उत्पन्न शारीरिक या मानसिक क्लेश 'व्याधि' कहलाता है। और वह मार्तस्वर तथा कम्पादिका जनक होता है ॥ [३३] १३५ ॥
_ 'योष' अर्थात् कफ, वात, पित्त और उनका सन्निपात प्रादि । 'स्तनित' अर्थात् पारस्वर । उसके उपलक्षण रूप होनेसे मुखका सूखना, वांतोंकी वीणाका बजाना, ठण्डकको इच्या पोर अगोंकी विक्षिप्तता तथा सन्ताप प्रादि अनुभावोंका भी प्रहरण होता है। [३३] १३५॥ ... (१३) अब स्मृति [रूप व्यभिचारिभावका लक्षण करते हैं ]
[सूत्र १६५]-मिलते-जुलते सदृश पदार्थको देखने मादिसे उत्पन्न पूर्व र अर्थका भान 'स्मृति' कहलाता है। और वह भौहेंको उम्नति मादिकी जननी होती है।।
हटाभास अर्थात् पूर्व अर्थका ज्ञान । तुल्यदृष्टिका अर्थ मिलते-जुलते सहा पदार्थका रेखमा, है। प्रादि शम्बसे सहश भवरण, चिन्ता, संस्कार, रात्रिके पिछले भागमें नीरका बुल बाना, ध्यान, बार-बार सोचना, दर्शनको तीव्रता प्रावि [विभावों प्रर्थात् कारणोंका ग्रहण होता है। भौहोंकी उन्नति प्रर्यात भौहोंका ऊपर चढ़ना मावि मनुभावोंका । उसके उपलक्षण
म होनेसे सिर हिलाना और देखने मावि अनुभावोंकी क्रिया प्रति उत्पत्ति जिससे होती हैबह उस प्रकारको [धम्मतिकियाकी जननी स्मृति होती है।]
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