Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० १००, सू० १५१ ] द्वितीयो विवेकः
[ २६३ [अयि आत्मशङ्कित ननु प्रवृत्तमधूत्सवे चित्रफलकस्य ।
केचित् तु हास्यहेतुनोपेतां' निगूढार्थरूपां प्रहेलिकां नाली मन्यन्ते । यथा 'बालिकावञ्चितके' पारिपाश्विक:
"तपनीयोज्ज्वलकरकं कुवलयारुचि भासमानमाकाशे ।
तेजोमयं दिनकराद् द्वितीयमाचक्ष्व मे भूतम् ।।" अत्र निगूढो नारदलक्षणोऽर्थः सूत्रधारेणास्मिन्नेव श्लोके 'द्वितीयमेनं मुनि पश्य'इति चतुर्थपादान्यथाकरणेन व्याख्यात इति । (१०) अथ मृदवम्
... [सूत्र १५१]-व्यत्ययो गुण-दोषयोः । मृदवम्
गुणानां दोषत्वं, दोषाणां च गुणत्वं येनोत्तरेण व्यत्ययो विपर्यासः क्रियते, तन्मृदा परपक्षमर्दनेन स्वपक्षमवति रक्षतीति मृदवम् ।।
गुणस्य दोषीकरणं यथा वेणीसंहारे द्वितीयेऽङ्के
"जयद्रथमाता-जाद ! ते खु बंधुवधामरिसुद्दीविदकोवा समरे अणवेक्खियसरीरा परिकमिस्संति। [जात ! ते खलु बन्धुवधामर्षोद्दीपितकोपाः समरेऽनपेक्षितशरीराः परिक्रमिष्यन्ति ।
इति संस्कृतम्] क्रुद्ध लोग हास्यके हेतु रूपमें प्राप्त होने वाली निगूढायं वाली 'प्रहेलिका' को 'नाली' बतलाते हैं । जैसे बालिकावञ्चितकमें पारिपाश्विक [कहता है ।
सोनेके समान चमकते हुए करों [किरणों और दूसरे पक्षमें हाथों] वाले, प्राकाशमें चमकते हुए और पृथिवी-मण्डलपर रुचि न रखने वाले, सूर्यको छोड़कर तेजोमय किसी अन्य भूत प्राणी] को मुझे बतलाओ।
यहाँ नारद रूप अर्थ छिपा हुआ है। सूत्रधारने [सूर्यसे भिन्न तेजोमय] 'इन मुनिको देखो' इस प्रकार चतुर्थ पादको बदलकर [अर्थात् द्वितीयमाचक्ष्व में भूतम्' के स्थानपर द्वितीयमेनं मुनि पश्य' ऐसा पाठ करके] बतलाया है।
(१०) मृदव नामक दशम वीथ्यङ्गअब 'मृदव' [नामक दशम वीथ्यङ्गका लक्षणादि कहते हैं- .
[सूत्र १५१]-गुण और दोषको बदल देना [अर्थात् गुणको दोष, और बोषको गुण बना ना] 'मृदव' कहलाता है।
जिस उत्तरसे गुणोंका दोषत्व, और दोषोंका गुणत्व इस प्रकारका परिवर्तन हो जाता है वह मृदः प्रर्थात् दूसरे पक्षके मर्दन द्वारा अपने पक्षको रक्षा प्रवन] करनेके कारण 'मृदव' कहलाता है :
गुरणको दोष बना देने [रूप 'मृदव' का उदाहरण] जैसे वेणीसंहारके द्वितीय अंकमें
जयद्रथ माता-अरे बेटा ! बन्धु [अभिमन्यु के वधके कारण अत्यंत कुछ हुए वे [पाण्डव लोग] अपने शरीरका भी मोह छोड़कर [युद्धभूमिमें] विचरण करेंगे [इसलिए उनसे सावधान होकर लड़ना चाहिए । १पेक्षा।
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