Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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२६२ ]
नाट्यदर्पणम्
केचित्तु साकांक्षस्य वाक्यस्य विनिवर्तनं वाक्केलीमधीयते । यथोत्तरचरिते — "त्वं जीवितं त्वमसि मे हृदयं द्वितीयं, स्व कौमुदी नयनयोरमृतं त्वमङ्ग । इत्यादिभिः प्रियशतैरनुरुध्य मुग्धां,
तामेव शान्तमथवा किमतः परेण ||" [३४] ६६ ॥
(1) अथ नालिका -
[ सूत्र १५० ] - हास्याय वञ्चना नाली
परविप्रतारणकारि यदुत्तरं हास्याय हास्यनिमित्तं निगूढार्थत्वाद् भवति स नाली व्याजरूपा प्रणालिका । यथा रत्नावल्यां सागरिका चित्रफलकार्थमागता कदलीगृहे वत्सराजं दृष्ट्वा बहिः स्थिता सुसङ्गतयोच्यते-
[ का० १००, सू० १५०
"सुसङ्गता - सहि जस्स कए तुवं आगदा सो एत्थ यूयेव चिट्ठदि ।
[ सखि यस्य कृते त्वमागता सोऽत्रैव तिष्ठति । इति संस्कृतम् ] । सागरिका - [सको पमिव ] सहि कस्स ? [ सखि कस्य ] ?
सुसङ्गता – [सहासम् ] अयि अप्पसकिदे गं पउत्तमहूसवे चित्तफलहयस्स ।
अर्थ लगाकर कहती है कि ] तो फिर उसी कोमल लताके पास जाओ मुझे क्यों धोखा देते हो इस प्रकार धनिका] राधा के पास जाकर लज्जित हुएं कृष्ण तुम्हारी रक्षा करें ।
कोई लोग साकांक्ष [ श्रपरिसमाप्त] वाक्य वापिस कर लेने [अर्थात् कहते-कहते ] को रोक लेनेको वाक्केली कहते हैं। जैसे उत्तरचरितमें
तुम [अर्थात् सीता] मेरी प्रातस्वरूप हो, तुम हो मेरा दूसरा हृदय हो, तुम नेत्रोंके लिए कौमुदीरूप और अंगोंके लिए श्रमृतरूप हो । इस प्रकारके सैकड़ों प्रिय वचनोंसे उस भोली [ सीता] को श्राश्वासन देकर अब उसको [तुमने घरसे निकाल दिया। इस बातको वासन्ती आगे कहना चाहती है, किन्तु उसको बीचमें ही रोक देती है] अथवा चुप रहो इसके मागे कहने से क्या लाभ ? ।। ६६ ।। [३४]
(६) नालिका नामक नवम वीथ्यङ्ग --
अब 'नालिका' [नामक नवम वीथ्यङ्गका लक्षरण करते हैं ]
(सूत्र १५० ) मजाक करनेके लिए धोखा देना 'नाली' [कहलाता ] है ।
घोखा देने वाला जो उत्तर हास्यके लिए अर्थात् गूढार्थ होनेसे हास्यका जनक होता है वह नाली अर्थात् बहाना रूप [हास्यकी] प्रणालिका [होनेसे 'नाली' कहलाता । जैसे रत्नावली में चित्रफलक के लेनेके लिए आई हुई सागरिका कबलीगृहमें वत्सराज उदयनको बैठा देखकर बाहर रुक जाती है । तब सुसंगता उससे कहती है
सुसङ्गता - हे सखि ! जिसके लिए तुम आई थीं यहीं स्थित हैं । सागरिका - [ क्रुद्ध होती हुई सी] हे सखि ! किसके लिए [मैं श्राई थी] ?
सुसङ्गता - [ हंसकर ] श्ररी अपने आप शङ्का कर लेने वाली ! इस प्रानन्दके अवसर पर चित्र फलक के लिए ।
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