Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० १००, सू० १५० ] द्वितीयो विवेकः
[ २६१ (८) अथ वाक्केली[सूत्र १४६]-प्रश्नोत्तरं तु वाक्केली हास्या वाक्-प्रतिवागपि ॥
[३४] ६६ ___प्रश्नस्य प्रश्नयोः प्रश्नानां वोत्तरं प्रश्नोत्तरम् । सहासा छेकोक्ति-प्रत्युक्तिर्वा । द्वयमप्येतद् वचनक्रीडारूपत्वाद् वाक्कली। यथा
"नदीनां मेघविगमे का शोभा प्रतिभासते ?।
बाह्यान्तरा विजेतव्या के नाम कृतिनारयः ? ॥" अत्र 'श्ररय' इति एकत्र रयाभावो, अपरत्र शत्रव इति एक प्रातवचनम् । एवं बहूनामपि द्रष्टव्यम् । एतत्प्रश्नोत्तरम् । छेकोक्ति-प्रत्युक्तियथा--
"कोऽयं द्वारि ? हरिः, प्रयाह्य पवन शाखामृगस्यात्र किं, कृष्णोऽहं दयिते, बिभेमि सुतरां कृष्णात् पुनर्वानरात् । मुग्धेऽह मधुसूदनो, व्रज लतां तामेव तन्वीमलं,
मिथ्या सूचयसीत्युपेत्य धनिकां ह्रीतो हरिः पातु वः ॥" (5) वाक्केली नामक अष्टम वीथ्यङ्गअब 'वाक्केली' [का लक्षणादि करते हैं
[सूत्र १४६] प्रश्नोत्तर प्रथवा हास्यपूर्ण उत्तर-प्रत्युत्तर 'वाक्कली' कहलाती है [३४] ६६ ।
एक प्रश्नका, दो प्रश्नोंका, अथवा बहुत प्रश्नोंका उत्तर [यहां पर] प्रश्नोत्तर [कहलाता है। प्रथवा हास्ययुक्त, चातुर्यपूर्ण, उक्ति-प्रत्युक्ति [ये दोनोंही वचनोंको क्रीडा रूप होने से वाक्कली है] । जैसे
बरसातके बाद नदियोंकी कसी शोभा होती है ? और किन बाह्य तथा प्रान्तरोंको विजय करना चाहिए ? 'ये दो प्रश्न हैं। इन दोनों प्रश्नोंका एफ ही उत्तर देते हैं कि] 'प्ररयः।
इसमें एक पक्षमें [अर्थात प्रथम प्रश्नके उत्तरमें] 'प्ररयः' का अर्थ रयका प्रभाव अर्थात् वेगाभाव और दूसरे पक्षमें 'शत्रु' यह [दोनों प्रश्नोंका] एक ही उत्तर है। इसी प्रकार बहुत प्रश्नोंका भी [एक ही उत्तर] हो सकता है। यह प्रश्नोतर [रूप वाक्केलोका उदाहरण है।
चातुर्यपूर्ण उक्ति-प्रत्युक्ति [का उदाहरण] जैसे
अरे दरवाजेपर यह कौन है ? [यह धनिका राधिकाका प्रश्न है। इसका उत्तर कृष्ण देते हैं] हरि [अर्थात् मैं कृष्ण हूँ। 'हरि' शब्दका अर्थ कृष्ण भी होता है और बानर भी। कृष्णने तो हरि शम्से कृष्ण प्रथं लेकर अपना परिचय दिया था। किन्तु राधाने उसका वानर अर्थ लेकर कृष्णको उत्तर दिया कि यदि तुम वानर होतो] उपवनमें चले जानो। यहाँ बन्दरका क्या काम ? [इस पर कृष्ण फिर] हे प्रिये ! मैं [बन्दर नहीं अपितु] कृष्ण हूँ। [इस पर राधा उसका काला बन्दर अर्थात् लंगूर अर्थ लेकर कहती है कि] काले बन्दरोंसे तो मैं बहुत उरती हूँ। [इस पर कृष्ण फिर मधुसूदन नामसे अपना परिचय देते हुए कहते हैं] प्ररी भीली प्रिये ! मैं [लंगूर नहीं] मधुसूदन हूँ। [राधा मधुसूदनका भ्रमर
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