Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
View full book text
________________
का० १०१, सू० १५२ ]
द्वितीयो विवेक:
यथा 'पाण्डवानन्दे' सूत्रधार - पारिपार्श्विकयोरुक्तिप्रत्युक्ती - "का भूषा बलिनां क्षमा परिभवः को यः स्वकुल्यैः कृतः, किं दुखं परसंश्रयो जगति कः श्लाध्यो य श्राश्रीयते । को मृत्युर्व्यसनं शुचं जहति के यैर्निर्जिताः शत्रवः, कैविज्ञातमिदं विराटनगरच्छन्नस्थितैः .. पाण्डवैः ॥ "
इति ।। [३५] १०० ॥
(१२) श्रथावल गितम् -
[ सूत्र १५२ ] - तच्चावलगितं सिद्धिः कार्यस्यान्यमिषेरण या ।
विवक्षितप्रयोजनस्यान्यकार्य करणव्याजेन सम्पत्तिर्यन तदन्यकार्याव लगनादवल - गितम् । यथोत्तरचरिते समुत्पन्नवनविहारदोहदायाः सीताया दोहदकार्यमिषेण जनापवादादरण्ये त्यागः ।
[ २६७
केचित् तु पात्रान्तरे स्वव्यापारं निक्षिप्य यत् कार्यान्तरकरणं तदवलगितमित्याहुः । यथा कृत्यारावणस्यामुखे
" सूत्रधारः - [ निःश्वस्य ] आर्ये ! ननु ब्रवीमि -
चित इस अभिप्राय से [ दूसरेसे ] पूछता है, और उत्तर देने वाला उचित उत्तर देता है वह 'उद्घात्यक' होता है ।
[
जैसे पाण्डवानन्द में सूत्रधार और पारिपाश्विक के उदित प्रत्युक्तिका [निम्न प्रकार ] हैबलवानोंका भूषण क्या है ? [ यह सूत्रधारका प्रश्न है ] । क्षमा [ बलवानोंका भूषरण है यह उत्तर ] | अपमान कोनसा है ? | यह प्रश्न है] जो अपने कुलके लोगों द्वारा किया जाय वही श्रपमान है [ यह उत्तर हुम्रा ] दुःख क्या है ? [ यह प्रश्न है ] दूसरोंका आसरा लेना [दुःख हैं यह उत्तर हुआ ] । संसार में प्रशंसनीय कौन है ? यह प्रश्न है ] जिसका लोग श्राश्रय लेते हैं [ यही इलाध्य है यह उत्तर हुआ ] मृत्यु क्या है ? [ यह प्रश्न है] व्यसन [ ही मृत्यु है यह उत्तर हुम्रा ] | शोकसे कौन बचता है ? [ यह प्रश्न है ] जिन्होंने शत्रुनोंपर विजय प्राप्त कर लो वे ही दुःख के पार हो जाते हैं यह उत्तर हुग्रा ] । इस सबको किसने समझ लिया है ? [ यह प्रश्न है ] विराटके नगर में छिपकर रहने वाले पाण्डवोंने [इन सब बातोंको ठीक तरहसे समझ लिया है यह उत्तर है ] । (१२) अवलगित नामक बारहवाँ वीथ्यङ्ग --
श्रम वलगित [का] लक्षणादि करते हैं ]--
[ सूत्र १५२] - जहाँ श्रन्यके बहाने से कार्यको सिद्धि हो उसको 'प्रवलगित' कहते हैं । जहाँ अन्य कार्यके करनेके बहानेसे विवक्षित प्रयोजनकी सिद्धि हो जाय वह श्रन्य कार्यका अवलम्बन करनेसे 'अवलगित' कहलाता है । जैसे उत्तररामचरितमें सीतः के मनमें afवहारको इच्छा उत्पन्न होनेपर सीताके इच्छा [दोहद ] रूप कार्यके बहानेसे जनापवादके काररण सीताको वनमें छोड़ देना [ प्रवलगितका उदाहरण है]
कुछ लोग अपने कार्यको दूसरे पात्रके ऊपर डालकर अन्य कार्य में लग जानेको 'श्रवसगित' कहते हैं । जैसे कृत्यारावरणके प्रामुखमें
सूत्रधार - [ निश्वास लेकर ] अरे श्रायें ! मैं तो यह कहता हूँ कि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org