Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० ५४, सू०८२ ] प्रथमो विवेकः
[ १५१ लोकप्रसिद्धवस्त्वपेक्षया यः समुत्कर्षः सगुत्कृष्टोऽर्थः स उत्कर्षाहरणादुदाहृतिः । यथा रत्नावल्या... "राजा---अहो महदाश्चर्यम् -
मनः प्रकृत्यैव चलं दुर्लक्षं च तथापि मे।
___ कामेनेदं कथं विद्धं समं सर्वैः शिलीमुस्वैः ।। अत्रेतरधन्विभ्यो मन्मथस्य युगपत् सर्वैः शरैः स्वभावचपल-दुर्लक्षमनोवेधेन समुत्कर्षः। (६) अथ क्रमः--
सूत्र ८२]-क्रमो भावस्य निर्णयः । भावस्य पराभिप्रायस्य, अथवा भाग्यमानस्यार्थस्य ऊह-प्रतिभादिवशानिर्णयो यथावस्थितरूपनिश्चयः 'क्रम' । वुद्धिस्तत्र क्रमते, न प्रतिहन्यसे इत्यर्थः।
यथा देवीचन्द्रगुप्ते"चन्द्रगुप्त:---ध्रुवदेवीं दृष्ट्वा स्वगतमाह] इयमपि देवी तिष्ठति । यैषा
रम्यां चारतिकारिणी च करूणां शोफेन नीता दशां, तत्कालोपगतेन राहुशिरमा गुप्तेव चान्द्री कला। पत्युः क्लीबजनोचितेन चरितेनानेन एस: सती,
लज्जा-कोप-विषाद-भीत्यरतिभिः क्षेत्रीकृता ताम्यति ॥" मोकप्रसिद्ध [सामान्य] वस्तुनोंकी अपेक्षा [किसी वस्तुका] जो समुत्कर्ष है वह उत्कर्ष का प्राहरण [करनेवाला होनेसे 'उदाहृति' [कहलाता है। जैसे रत्नावलीमें
"राजा-अरे ! अहो ! बड़े प्राश्चर्यकी बात है कि
मन तो स्वभावतः ही घञ्चल और न दिखलाई देनेवाला है। फिर भी कामदेवने मेरे उस मनको एक साथ ही अपने सारे वारणोंसे विद्ध कर दिया है।"
यहाँ स्वभावतः चञ्चल और ने दिखलाई देनेवाले मनको एक साथ ही सारे वारणोंसे वेध देनेके कारण अन्य धनुर्धारियोंको अपेक्षा 'कामदेवका उत्कर्ष वरिणत होनेसे यह 'समुत्कर्ष' नामक अंगका उदाहरण है। (६) क्रम--
अब 'क्रम' [नामक गर्भसंधिके षष्ठ अंगका लक्षण करते हैं[सूत्र ८२]-भावका निश्चय 'क्रम [कहलाता है
भाव अर्थात् दूसरेके अभिप्रायका, अथवा ऊहा, प्रतिभा पाबिके द्वारा भाग्यमान [विचार प्रादिमें निमग्न अर्यके यथावस्थित रूप माविका निश्चय 'कम' [कहलाता है। उसके विषयमें बुद्धि क्रमण करती है [चलती है।] प्रतिहत नहीं होती है इसलिए उसको 'क्रम' कहते हैं । जैसे देवो चन्द्रगुप्त में
"चन्द्रगुप्त - [ध्रवदेवीकी मोर देखकर] यह देवी भी बैठी है मो--
तत्काल पाए हुए राहुके शिरके द्वारा कवलितकी हुई चन्द्रमाको कलाके समान शोक के कारण रम्य होने पर भी दु लदायिनी करुण अवस्थाको प्रास, पतिके पुरुष होने पर भी नपुंसकों-जैसे इस प्राचरणसे लज्जा, कोप, विषाद, भय परतिसे मस्त दुःखी हो रही है।
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