Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० ६०, सू० १०१-१०२ ]
प्रथमो विवेकः
[ १७७
अन्ये त्वस्य स्थाने युक्ति पठन्ति । युक्ति सविच्छेदोक्तिः । यथा पुष्प
दूतिके --
"समुद्रदत्तः-
(१२) अथादानम् -
भर्ता तवाहमिति कष्टदशाविरु पुत्रस्तवैष कुत इत्यनुहारना । शस्त्रं पुरः पतति किं करवाहिन् व्यक्तं विरौमि यदि साभ्युपत्स्यते माम् ॥” इति ।
[ सूत्र १०१] - फलसामीप्यमादानम् | मुख्य फलस्य दर्शनमादानम् । यथा नागानन्दे - [नायकमुद्दिश्य ] गरुडः ---
नागानां रक्षिता भाति गुरुरेष यथा मम । तथा सर्पानाकांक्षा व्यक्तमयापनेध्यति ॥
अत्र नागरक्षालक्षणस्य मुख्यफलस्य सामीप्यनिबन्ध इति । (१३) अथ व्यवसायः
[ सूत्र १०२ ] - व्यवसायोऽर्थ्य हेतुयुक् ।। ६० ।।
हैं ] -
जाननेवाले लोगोंको समंत पञ्चकके चारों श्रोर भेज दें । बदलेमें धन पूजा प्रादिके श्राश्वासन से प्रेरित होकर दुर्योधनको पकड़वानेके [लिए] समाचार देनेको तैयार हो जायेंगे ।
इसमें दुर्योधनका पता लगानेवालोंको सत्कार धन आदिका प्रलोभन देनेका जो वचन दिया गया है वही 'प्ररोचना' है ।
अन्य लोग
इस [प्ररोचना ] के स्थानपर युक्ति [अङ्ग ] को पढ़ते हैं । जैसे पुष्पहूतिक समुद्रदत्त [ कहता है ] -
में
"मैं तुम्हारा स्वामी हूँ यह [कहना इस ] कष्टदशाके विपरीत है । यह तुम्हारा पुत्र है [ यह कहा जाय ] तो फिर यह अनुदारता क्यों ? शस्त्रका प्रहार होनेवाला है अब क्या करू,
यदि स्पष्ट रूपसे रोता-चिल्लाता हूँ तो वह मुझको जान लेगी ।"
(१२) अब 'श्रववान' [ नामक विमर्शसंधिके बारहवें प्रङ्गका लक्षण श्रादि करते हैं ] - [ सूत्र १०१] फलका समीप दीखना 'आदान' कहलाता है ।
मुख्य फलका [ समीप ] दीखना 'श्रादान' कहलाता है। जैसे नागानन्दमें नायकको लक्ष्य करके गरुड़ [ कहते हैं ]
"नागोंके रक्षक ये [ जीमूतवाहन] मेरे गुरुसे प्रतीत होते हैं इसलिए अब साँपोंको खाने की [मेरी ] इच्छा निश्चय ही समाप्त हो जायगी ।"
इसमें नागों की रक्षा रूप मुख्य कार्यके सामीप्यका वर्णन किया गया है। [अत एव यह 'आदान' नामक इस अङ्गका उदाहरण है]
(१३) अब 'व्यवसाय' [ नामक विमर्शसंधिके तेरहवें श्रृङ्गका लक्षरण श्रादि करते
[सूत्र १०२ ] – प्रर्थनीय फलके हेतुका योग 'व्यवसाय' [कहलाता ] है ।६०|
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