Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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१५२ ]
नाट्यदर्पणम् [ का० ६५, सु० ११५ वासवदत्ता-फुडं य्येव किन्न भणासि पडिवाहेदि से रयणमालं ति । [स्फुट मेव किन्न भणसि प्रतिपादयास्मै रत्नावलीमिति ।
__ इति संस्कृतम् ]।" अत्र 'वत्सराजाय रत्नावली दीयताम्' इति कार्यस्य यौगन्धरायणाभिप्रायानुप्रविष्टस्य वासवदत्तया दर्शनम् ।
यथा वा यादवाभ्युदये
"युधिष्ठिरः-देव ! कृष्णोऽयं भारतार्धचक्रवर्ती नवमो वासुदेव इति मुनयः सन्ति ।
समुद्रविजयः-जाने भारतार्धराज्ये - कृष्णमभिषेक्तु मामुत्साह यति महाराजः।
युधिष्ठिरः--एतदेव देवस्य जरासन्धवधप्रयासफलम् ।" इति । अत्र युधिष्ठिराभिमतं कृष्णराज्याभिषेककार्य समुद्रविजयेन दर्शितम् ।
मुखसन्ध्याधु क्तवाक्यसदृशवाक्यदर्शनम् पूर्ववाक्यं अंगमस्य स्थाने केचिदामनन्ति ।
यथा मुद्राराक्षसे
"चाणक्यः [पुरुषं प्रति]-इदं च वक्तव्यो विजयो दुर्गपालः । अमात्यराक्षसदर्शनप्रीतो देवश्चन्द्रगुप्तः समाज्ञापति, विना हस्तिभ्यः क्रियतां सर्वबन्धनमोक्ष इति। अथवा अमात्यराक्षसे नेतरि किं हस्तिभिः प्रयोजनम् ?
वासवदत्ता-स्पष्ट रूपसे क्यों नहीं कहते हो कि रत्नावली इन [उदयन] को दे दो।"
यहाँ यौगंधरायणके अभिप्रायके भीतर अनुप्रविष्ट 'रत्नावलीको वत्सराजको दे दो' इस [मुख्य कार्यका वासवदत्ताके द्वारा वर्शन है [अतः यह पूर्वभावका उदाहरण है] ।
अथवा जैसे यादवाभ्युदयमें---
"युधिष्ठिर--देव ! मुनि लोग कहते हैं कि वसुदेवके नवम पुत्र यह कृष्ण भारतके प्राधे भागके चक्रवर्ती राजा होंगे।
___ समुद्रविजय-जान पड़ता है कि कृष्णको प्राधे भारतके राज्यपर अभिषिक्त करनेके लिए महाराज मुझको उत्साहित कर रहे हैं।
युधिष्ठिर--यही अापके जरासंधके वध करानेके प्रयासका फल है।"
यहां युधिष्ठिरके अभिमत कृष्णके राज्याभिषेक कार्यको समुद्रविजयने दिखलाया है [इसलिए यह पूर्वभाव अङ्गका उदाहरण है।
कुछ लोग इस [पूर्वभाव अङ्ग] के स्थानपर मुखसंधि आदिमें कहे गए वाक्यके सदृश वाक्यके [पुनः] दर्शन रूप पूर्ववाक्य नामक प्रङ्गको मानते हैं।
जैसे मुद्राराक्षसमें
"चाणक्य--[पुरुषके प्रति] पौर दुर्गपाल विजयसे यह भी कहो कि अमात्य राक्षसके दर्शनसे प्रसन्न हुए देश चन्द्रगुप्त प्राज्ञा देते हैं कि हाथियोंको छोड़कर शेष सभी बंधन वालों को मुक्त कर दो। प्रयया अमात्य रामसके नेता हो जाने पर प्रव हाथियोंको भी क्या प्रावश्यकता है?
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