Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० ६६-६७, सू० ११७ ]
द्वितीयो विवेकः
[ २०५
'मन्दगोत्रा' मन्दकुला, अंगना नायिका यत्र । यद्वा 'मन्दा' मन्दवृत्ता, गोत्रांगना यत्र । अत एवात्र नायिकौचित्येन नायकोऽपि मन्दगोत्र एव । एवं च पुष्पदूतिके अशोक दत्तादिशब्दाकर्णनेन समुद्रदत्तस्य नन्दयन्त्यां या व्यलीकशंकोपनिबद्धा, सा न दोषाय । परपुरुषसम्भावनाया निर्वहणं यावदत्रोपयोगात् । अपरथा उत्तमप्रकृतीनां श्वशुरेण वध्वाः, पुत्रे दूरे स्थिते निर्वासन, निर्वासितायाश्च शबरसेनापतिगृहेsaस्थानमनुचितमेव ।
'मन्दगोत्रा' अर्थात् मध्यम कुलकी 'अंगना' अर्थात् नायिका जिसमें हो । अथवा 'मन्दा' अर्थात् मध्यम श्राचरण वाली 'गोत्राङ्गना' प्रर्थात् कुलजा नायिका जिसमें हो [ वह 'प्रकरण' कहलाता है]। इसीलिए नायिकाकी अनुरूपता के कारण नायक भी मध्यम कुल का ही होता है । इसलिए 'पुष्पदूतिक' में 'प्रशोकदत्त' आदिके शब्दको सुन कर 'समुद्रदत्त' की 'नन्दयन्ती' के चरित्रके विषय में जो शंका वरिणत की गई है वह दोषाधायक नहीं है । क्योंकि यहाँ निर्वहण सन्धि- पर्यन्त परपुरुष [ के साथ 'नन्दयन्ती' के सम्बन्ध ] की सम्भावनाका उपयोग [दिखलाई देता ] है । प्रन्यथा उत्तमप्रकृति वाले लोगों में पुत्रके बाहर दूर गए होने पर श्वशुरके द्वारा पुत्रबधूका घरसे निष्कासन, और निकाल दिए जानेपर [ पुत्रबधू er] शर-सेनापति घरमें रहना [जो कि इस 'पुष्पदृतिक' 'प्रकररण' में दिखलाया गया है वह ] अनुचित ही हो जाएगा [ उसकी संगति तब ही लगती है जब उसके नायक तथा नायिका प्रादिको उत्तम प्रकृतिका न मान कर मध्यम- प्रकृति माना जाए ] ॥
इसका अभिप्राय यह है कि उत्तम प्रकृतिकी नायिकाके प्रति कभी परपुरुष सम्बन्ध की शंका आदि नहीं की जा सकती है । 'पुष्पद्वतिक' की नायिका 'नन्दयन्ती' के प्रति उसके श्वशुरको परपुरुष सम्बन्धको शंका उत्पन्न हो गई थी इसलिए उसने पुत्रबधूको घर से निकाल दिया था । इसपर यह शंका होती है कि जैसे 'पुष्पदूतिक' की नायिकाके चरित्र के विषय में शंका हो गई थी, इसी प्रकार 'वेणीसंहार' में दुर्योधनको भी अपनी पत्नी भानुमती के चरित्रके विषय में शंका हो गई थी। तो क्या भानुमती और दुर्योधनकी गणना भी मध्यम प्रकृति के नायक नायिकामें की जानी चाहिए ? श्रथवा उनको उत्तम वर्गके नायकनायिका में ही गिनना चाहिए। इस शंकाका ग्रन्थकार यह समाधान करते हैं कि 'वेणीसंहार' में जो भानुमती के प्रति शंकाका वर्णन किया गया है वह अनुचित है । वे दोनों उत्तम प्रकृति के नायक-नायिका हैं । प्रत एव भानुमतीके चरित्रके प्रति शंकाका वर्णन नाटककारको नहीं करना चाहिए था ।
किया गया है । दुर्योधनकी
वेणीसंहारके द्वितीय अंक में इस घटनाका उल्लेख रानी भानुमतीने युद्ध के प्रारम्भ होनेके पूर्व एक दिन रातको एक बहुत बुरा स्वप्न देखा था । उसकी शान्तिकी व्यवस्था करानेकेलिए वह एकान्त में आनी सखियोंको उस स्वप्न को सुना रही है । इसी बीचमें दुर्योधन उस स्थानपर पहुँच जाता है और छिपकर उनकी बातें सुनने लगता हैं | स्वप्न में भानुमतीने यह देखा था कि किसी नेवलेने सौ साँपों को मार डाला है । यह सौ संख्या कौरवोंके साथ सम्बद्ध हो जाती है इसलिए उसे सौ भाइयों सहित दुर्योधन के प्रनिष्टको शंका हो गई थी। इसी स्वप्नको वह सखियोंको सुना रही है । उसमें नेवले के लिए 'नकुल' शब्दका प्रयोग किया गया है । इसको सुन कर दुर्योधनको माद्रीपुत्र
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