Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम्
[ का० ६६, सू० १४२
राजा - वयमपि स्वपक्षं प्रति शिथिलाभिमानाः संवृत्ताः । गरणदासः -- देव ! अद्य नर्तयिताऽस्मि । धारणी - दिट्ट्या पेक्खगाराधरोण. [गरणदासमवलोक्य] अज्जो वढदि । [दिष्ट्या प्रेक्षकाराधनेन आर्यो वर्धते ।
२४४ ]
गणदासः - देवपरिग्रहो मे वृद्धिहेतुः । [विदूषकं विलोक्य] वदेदानीं यत् ते मनः कर्षति ।
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विदूषकः — पढमोवदेसदंसणे पढमं बंभरणस्स पूया इच्छिदुव्वा, सा तए
लंघिदा ।
[प्रथमोपदेशदर्शने प्रथमं ब्राह्मणस्य पूजा एव्या, सा त्वया लंघिता ।] परिव्राजिका हो प्रयोगाभ्यन्तरः प्रश्नः !
[सर्वे प्रहसन्ति मालती स्मितं करोति ] ।”
इत्ययं नायकस्य विश्रब्धनायिकादर्शनार्थं प्रयुक्तो हास्यलेशकारित्वाद् व्याहारः । भाविदृष्टिर्यथा रत्नावल्यां द्वितीयेऽङ्क
राजा - हमारा भी अपने पक्ष में [अर्थात् मासविकाकी प्रतिद्वंद्विनीके विषय में] अभिमान नहीं रहा [ मालविकाकी जीत हुई ] ।
गरणदास -- देव ! आज मैं नर्तयिता [ सच्चा नृत्य-शिक्षक कहलानेका अधिकारी ] हूँ । [ क्योंकि आप मेरे कार्य से सन्तुष्ट हुए हैं] ।
धारणी – सौभाग्यसे प्रेक्षक [प्रर्थात् निर्णायक ] को प्रसन्न करके प्रापकी [ वृद्धि] विजय हो रही है ।
गरणदास --- प्रापका सेवक होना ही मेरी वृद्धिका कारण है । [ विदूषककी श्रोर देखकर], अच्छा, अब तुम्हारा मन क्या कहता है सो बताओ ?
विदूषक -- पहिली बार उपवेशका प्रदर्शन करते समय [अर्थात् अपनी कलाकी परीक्षा देते समय ] पहिले ब्राह्मरणदेवताको पूजा करनी चाहिए सो प्रापने नहीं की हैं।
परिब्राजिका - प्रोहो ! प्रयोगकी बड़ी बारीकीका प्रश्न है ।
[ सब लोग जोरसे हँसने लगते हैं । मालविका मुस्कराती है । ] "
यह नायक [राजा] को विश्रब्ध रूपसे [ अधिक काल तक ] नायिका को दिखलाने [ रूप अन्यार्थ ] के लिए [विदूषक द्वारा ] तनिक हास्यकारी [ वचन कहा गया है इसलिए यह व्याहार [का उदाहरण ] है ।
भाविदृष्टि [रूप द्वितीय प्रकारके व्याहारका उदाहरण] जैसे रत्नावलीके द्वितीय श्र में राजा [ कहते हैं]
यह श्लोक श्लेषयुक्त है । इसमें दिए गए विशेषरण लता और नारी दोनों पक्षोंमें लगते हैं। राजा समदना नारी-सी दीखनेवाली लताको देखकर कह रहे हैं कि इसकी ओर देखने से महारानी समदना नारीका अवलोकन मानकर अवश्य नाराज होंगी। और आगे चलकर इसी प्रसंग में समदना सागरिका के साथ राजाको देखकर महारानीका मुख क्रोधसे लाल हो जाता है । इसलिए इस श्लोक में जो 'कोपविपाटलद्युति मुखं देव्याः करिष्याम्यहम्' कहा हैं वह भाविदृष्टि विषयक हास्यलेशोक्ति होनेसे व्याहार नामक वीथ्यङ्गका उदाहरण है । श्लोक
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