Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० ६६, सू० १४२ ] द्वितीयो विवेकः
[ २४५ राजा-उद्दामोत्कलिकां विपाण्डुररुचि प्रारब्धजृम्भां क्षणा
दायासं श्वसनोद्गमैरविरलैरातन्वतीमात्मनः । "अद्योद्यानलतामिमां समदनां नारीमिवान्यां ध्रुवं
पश्यन कोपविपाटला ति मुखं देव्याः करिष्याम्यहम् ॥" अत्र राज्ञा वासवदत्ता प्रति भाव्यर्थदर्शनं हास्येनोक्तम् ।।
अन्ये तु वर्तमानप्रत्यक्षार्थवाचकं हास्यलेशकरं वचो व्याहारमिच्छन्ति । यथा मृच्छकट्यां विदृषको गणिकाया वसंतसेनाया गृहं प्रविशन् वसंतसेनाया मातरं दृष्ट्वा पृच्छति। “विदृपकः-का एसा बंधुला ?
[का एषा बंधुला ?] चेटी-एसा अज्जुआए जणणी अत्तिया।
[एषा आयोया जननी अत्तिका] । विदूषकः-जदि मरे ता सीयालसहस्सस्स पज्जत्तिका । अथ किं एदं पवेसिय' दुवारसोहा निम्मविदा ? आदु उक्वंदवेण पवेसिदा ? का अर्थ निम्न प्रकार है---
"प्रचुर उत्कलिकाओं [नारी पक्षमें प्रियमिलनको उत्कण्ठाओं और लतापक्षमें कलियों से परिपूर्ण, [नारी पक्षमें प्रियवियोगके कारण और लतापक्ष में फूलोंसे लदी होने के कारण धवलकान्तिवाली, ज़म्भायुक्त [और 'प्रारब्धज़म्भी' में 'जम्मा' पदसे नारी पक्षमें जम्भाई तथा लतापक्षमें कुसुमोंका विकास अर्थ लेना चाहिए ] और निरन्तर होनेवाले वायुके झोंकोंसे [नारी पक्षमें 'श्वसनोद्गमैः' का अर्थ दीर्घ निश्वास और लतापक्षमें इसका अर्थ वायुके झोंके लेना चाहिए] से अपने प्रायास [ नारी पक्षमें अपने दुःख तथा लतापक्षमें अपने कम्पन ] को प्रकाशित करती हुई अन्य नारीके समान [तुल्य विशेषणोंवाली] इस उद्यानलताको देखता हुमा प्राज मैं निश्चय ही देवी [महारानी] के मुखको क्रोधसे प्रारक्तवर्ण कर दूंगा।"
इसमें राजाने वासवदत्ताके प्रति भावी अर्थका दर्शन [अर्थात् प्रागे होनेवाली घटना] को हास्यके रूपमें कहा है । [इसलिए यह भाविदृष्टि रूप 'स्याहार' नामक वीथ्यङ्गका उदाहरण है।
अन्य लोग तो वर्तमान प्रत्यक्ष प्रर्थक बोधक हास्यमय वचनको व्याहार कहते हैं । जैसे मृच्छकटिकमें वसन्तसेना वेश्याके घर में प्रविष्ट होते समय वसन्तसेनाको माताको देखकर विदूषक पूछता है
"विदूषक - यह [बन्धुला] रंडी कौन है ? चेटो-यह आर्या [वसन्तसेना] को माता अत्तिका है।
विदूषक-- यदि [यह] मरे तो हजारों शृङ्गालोंके लिए [भोजनार्थ पर्याप्त है। और यह तो बतलायो कि क्या इसको [मकान के भीतर] प्रविष्ट करनेके बाद द्वारकी शोभाका निर्माण करवाया था अथवा ऊपरसे उठाकर भीतर लाये थे [क्योंकि वह इतनी अधिक मोटी है कि द्वारमेंसे तो यह भीतर पा नहीं सकती है । १. पतिमि।
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