Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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[ का० ७६, सू० १२६
अत्र च गर्भावमर्श सन्धिप्रतिषेधे एतत्सन्धिपरिच्छेदिके प्राप्त्याशा- नियताप्ती अवस्थे अपि प्रतिषिद्धे एव । एवमपरेष्वपि रूपकेषु तत्तत्सन्धिनिषेधे तत्तत्सन्धिपरिच्छेदिकावस्थापि निषिद्धैव द्रष्टव्येति ।
अस्त्रीति अस्त्र्यर्थसंग्रामसंयुक्तश्च । यथा जामदग्न्यजये परशुरामेण सहस्रार्जुनवधः कृतः । नियुद्धं बाहुयुद्धम् । स्पर्धनं शौर्य - विद्या-कुल-धन-रूपादिकृतः संहर्षः । ताभ्यामुद्धृतो दीप्तः ।
प्रयोग नहीं होता है । इनमें से 'व्यायोग' में 'गर्भ' और 'विमर्श' को छोड़कर केवल तीन सन्धियों और तीन अवस्थाओं का ही प्रयोग होता है । 'डिम', 'समवकार' आदि में विमर्श सन्धिको छोड़कर शेष चार सन्धियों और चार अवस्थाओं का उपयोग होता है । 'भाग' तथा 'प्रहसन' 'उत्सृष्टिकांक' तथा 'वोथी' इन चारोंमें केवल प्रादि और अन्तकी दो अवस्थानों और दो सन्धियों का ही उपयोग होता है । बीच की तीन अवस्थाओं तथा तीन सन्धियों का उपयोग नहीं होता है । इन बारह प्रकारके रूपक भेदोंकी सन्धि तथा अवस्था दृष्टिसे स्थिति निम्न प्रकार बनती है
श्रादिके प्रयोगकी
रूपक भेद
१. नाटक
२. प्रकरण
३. नाटिका
४. प्रकरणी
५. व्यायोग
६. ईहामृग
७. समवकार
नाट्यदर्पणम्
८. डिम
६. भोरण
१०. प्रहसन ११. उत्सृष्टिकांक
१२. वीथी
केवल चार अंकों में
केवल चार अंकों में
गर्भ, विमर्श रहित
गर्भ, विमर्श रहित
विमर्श वर्जित
विमर्श वर्जित
प्रतिमुख, गर्भ, विमर्श रहित
भारणवत्
भोरणवत्
भाणवत्
भागवत्
भारणवत्
भागवत्
यहाँ [अर्थात् व्यायोगमें] गर्भ तथा विमर्श सन्धिका निषेध होनेसे इन सन्धियों को व्याप्त करने वाली 'प्राप्तयाशा' प्रर 'नियताप्ति' रूप प्रवस्थानोंका भी निषेध समझना चाहिए । इसी प्रकार अन्य रूपकोंमें भी उस उस सन्धिका निषेध होनेपर उस उस सन्धि को व्याप्त करने वाली अवस्थाको भी निषिद्ध ही समझना चाहिए ।
'स्त्री' इत्यादिसे स्त्रीको छोड़कर अन्य निमित्तसे संग्रामयुक्त हो [यह सूचित किया है] जैसे 'जामदग्न्यजय' [नामक व्यायोगमें] परशुरामने सहस्त्रार्जुनका वध किया है। 'नियुद्ध' का बाहुयुद्ध है । शौर्य, विद्या, कुल, धन और रूपादिके कारण होनेवाला संहर्ष 'स्पर्धा' [कह[लाता ] है । उन दोनों [अर्थात् नियुद्ध तथा स्पर्धा ] से उद्धत अर्थात् दीप्त [ व्यायोग होता है ] । १. मुरत्वपि ।
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प्रयुक्त अवस्था सन्धि
पाँचों अवस्था तथा सन्धियाँ
पाँचों अवस्था तथा सन्धियाँ
पाँचों अवस्था तथा सन्धियाँ
पाँचों अवस्था तथा सन्धियाँ
तीन अवस्था तथा सन्धियाँ
तीन अवस्था तथा सन्धियाँ
चार अवस्था तथा सन्धियाँ
चार अवस्था तथा सन्धियाँ श्रादि श्रन्त की दो सन्धि-अवस्था
वर्जित अवस्था सन्धि
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