Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम् [ का० ६-६३, स्मृ. १३६-१४८ अथ कृत्यशेषमुपदिशति[सूत्र १३६]--व्याजेनात्र रणाभावो बधासन्ने शरीरिणि ।
व्यायोगोक्ता रसाः सन्धि-वृत्त योऽनुचिता रतिः ॥ [२७] ६२ ॥
बधासन्ने समरानन्तरं भाविबधयोग्ये शरीरिणि व्याजेन पलायनादिना रणाभावो विधेयः । भारतां साक्षात् , नेपथ्येऽपि बधो न वर्णनीयः। रसा वीर-रौद्राद्या दीप्ताः । सन्धयो गर्भावमर्शवर्जितास्त्रयः । वृत्तयश्च कैशिकीहीना तिन एव । 'सन्धिवृत्तयः' इतीतरेतरयोगो द्वन्द्वः । अनुचिता रति रत्याभासः । स च प्रतिनायकस्य निष्प्रेमस्त्रीविषयत्वादिति ।। [२७] ६२॥
अथ क्रमप्राप्तां वीथीं लक्षति[सूत्र १४०]-सर्वस्वामि-रसा वीथी त्वेकाङ्का द्वय कपात्रिका।
मुखनिर्वाहसन्धिः स्यात्, सर्वरूपोपयोगिनी ॥ [२८] ६३ ॥ नाटकादिसर्वरूपकाणामेतदुक्तम् । वक्रोक्तिमार्गेण गमनाद् वीथीव वीथी । अब [उत्सृष्टिाकाङ्कमें] करने योग्य शेष बातोंको कहते हैं--
[सूत्र १३६]- इसमें बधासन्न व्यक्तिके [पलायन प्रादिके] बहानेसे युद्ध की समाप्ति तथा व्यायोगमें कहे हुए [वीर रौद्रादि दीप्त] रस सन्धि एवं [कैशिकीको छोड़कर भारती, सात्वती, पारभटी तीन] वृत्ति [होनी चाहिए], तथा एवं अनुचित रतिका वर्णन होना चाहिए ॥ [२७] ६२ ॥
____बघासन्न अर्थात् बादमें शीघ्र ही जिसका वध होने वाला हो इस प्रकारके शरीरी अर्थात् व्यक्ति के पलायन प्रादिके बहानेसे इसमें युद्धको समाप्ति दिखलानी चाहिए । अर्थात् साक्षात् [बध दिखलाए जानेको] की बात तो दूर रही नेपथ्यमें भी बधका वर्णन नहीं करना चाहिए। व्यायोगोक्त रस अर्थात् वीर रौद्रादि दीप्त रस [होने चाहिए] । गर्भ और मवमर्श सन्धियोंको छोड़कर [मुख, प्रतिमुख तथा निर्वहरण रूप तीन सन्धि [होने चाहिए । और कैशिकीको छोड़कर [भारती, सात्त्वती, प्रारभटी आदि तीन ही वृत्तियाँ होनी चाहिए। 'सन्धि-वृत्तयः' इस पदमें इतरेतरयोगमें द्वन्द्व-समास है अनुचित रति अर्थात् रत्याभासका वर्णन होना चाहिए और वह प्रतिनायकके अननुरक्त स्त्री-विषयक [रति प्रदर्शन होनेसे होता है ।[२७] ६२॥ द्वादश रूपक भेद 'वीथी'का लक्षण
अब क्रमप्राप्त 'वीथी' का लक्षरण करते हैं---
[सूत्र १४०] -[उत्तम, मध्यम अधम] सब प्रकारके नायकोंसे और समस्त रसोंसे युक्त, एक अङ्क और एक या दो पात्रों वाली, मुख तथा निर्वहण [रूप दो] सन्धियोंसे युक्त, [अपने त्रयोदश प्रङ्गों द्वारा नाटक प्रादि] समस्त रूपकोंको उपकारिणी 'बीथी' [कहलाती] है। [२८] ६३ ॥
[सर्वरूपोपयोगिनी] यह बात नाटकादि सभी रूपक के षयमें कही गई है । [अर्थात् वीथी में कहे जानेवाले तेरह अङ्ग नाटक सहित सभी रूपकोंमें होते हैं। वक्रोक्तिमार्गसे १. वीथीति ।
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