Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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२१८ ]
नाट्यदर्पणम् [ का० ७४-७५, सू० १२५ अथ पूर्णदशा-संधीनि रूपकाणि लक्षयित्वा न्यूनदशा-सधीनि निरूप्यन्ते । तत्रापि मनुष्यनायकप्रत्यासत्त्या प्रथम 'व्यायोग' लक्षयति[सूत्र १२५]-एकाहचरितकांको गर्भामर्शविजितः ।।
अस्त्रीनिमित्तसंग्रामो नियुद्धस्पर्धनोद्धतः ॥ [९] ७४ ॥ स्वल्पयोषिज्जनः ख्यातवस्तुर्दीप्तरसाश्रयः ।
अदिव्यभूपतिस्वामी व्यायोगो नायिका विना ॥[१०]७५॥ एकदिवसनिवर्तनीयकार्य एक एव अङ्को यत्र। एकाहचरितत्वाच्चैकाङ्कत्व['प्रकरण' के समान ही 'प्रकरणी' का निर्वचन मागे दिखलाते हैं जिसमें [पाख्यान-वस्तुरूप] अर्थ भली प्रकारसे किया अर्थात् कल्पित किया जाता है वह 'प्रकरणी' कहलाती है [यह 'प्रकरणी' शब्दका अवयवार्थ हुआ] । अल्पार्थमें कप-प्रत्यय करके 'प्रकरणिका' [पद भी बन जाता है] । [नाटिका और प्रकरणी] ये दोनों ही [नाटक तथा प्रकरण रूप] मुख्य दो रूपकों के संकरसे उत्पन्न होनेके कारण संकीर्णभेद रूप हैं। इसी प्रकार दो रूपकों या तीन रूपकों के संकरसे उत्पन्न अन्य संकर भेद भी हो सकते हैं। किन्तु लक्ष्य ग्रन्थोंके रूपमें] न पाए जानेसे और मनोरञ्जक न होनेसे हमने उनके लक्षण नहीं किए हैं । 'नाटक' और 'प्रकरण' के समान ही नाटिकामें राजामोंके और 'प्रकरणिका' में वरिणगादिके, धर्म एवं अर्थके प्रविरोधी विलास-प्रधान वृत्तका वर्णन करना चाहिए ॥ [८] ७३ ॥
५. पञ्चम रूपकभेद 'व्यायोग' का निरूपण इस प्रकार नाटक, प्रकरण, नाटिका और प्रकरणी इन चार रूपक भेदोंका निरूपण कर चुकने के बाद अब पञ्चम भेद 'व्यायोग'के लक्षणका अवसर प्राता है। यहां तक जिन चार रूपका भेदोंका निरूपण किया गया है उन सबमें सम्पूर्ण दशाओं और सन्धियों. का वर्णन था। किन्तु यहाँसे आगे जिन रूपकभेदोंका वर्णन किया जाएगा उनमें दशा तथा सन्धि दोनों न्यून संख्यामें रहेंगी। इसी भेदको दिखलाते हुए ग्रन्थकारागे 'व्यायोग'का लक्षण प्रादि करते हैं।
पूर्ण दशाओं और पूर्ण सन्धियोंसे युक्त [१ नाटक, २ प्रकरण, ३ नाटिका और ४ प्रकरणी इन चार] रूपकोंके लक्षण कर चुकने के बाद अब न्यून दशा और सन्धियोंसे युक्त [रूपक भेदों का निरूपण [प्रारम्भ करते हैं। उनमें से भी ['च्यायोग' में नाटकादि पूर्वोक्त चार रूपकभेदोंके समान मनुष्य नायकका सम्बन्ध होनेसे पहले च्यायोग'का निरूपण करते हैं-----
[सूत्र १२५ क] - एक दिनके वृत्तान्तको दिखलाने वाले और एक ही अंक से युका, गर्भ तथा विमर्श सन्धियोंसे रहित, स्त्रीसे भिन्न निमित्तसे संग्राम जिसमें दिखलाया गया हो, मल्लयुद्ध और स्पर्धासे दीप्त ।- [६] ७४ ।
सूत्र १२५ ख]-बहुत कम स्त्री पात्रों वाला, प्रसिद्ध कथा-वस्तु तथा दीप्त रसोंसे सम्पन्न, अदिव्य [देवता तथा राजा आदिसे भिन्न सेनापति अमात्यादि रूप नायकसे युक्त रूपक 'ज्यायोग' [कहलाता है। किन्तु उसमें नायिका नहीं होती है। [१०] ७ ।
एक दिन में ही कार्यकी समाप्तिको प्रदर्शित करने वाला, एक ही अंक जिस में हो [वह एकमेव 'व्यायोग' कहलाता है। यह व्यायोगका मुख्य लक्षण है] । एक ही दिनके
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