Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम् [ का० ५५, सू०८ [देवं प्रेक्षिष्ये इत्याचारपुष्पस्य कारणात् प्रमदवनं गतोऽस्मि। तत्र चाशोकस्तबकस्य प्रसारित हस्ताने कोटरविनिर्गतेन सर्परूपेण कालेनास्मि लब्धः। इमो द्वौ दंष्ट्रावणौ ॥ [इति संस्कृतम]।"
-- अत्र राजप्रसादपरीक्षार्थ विदृषकेण केतकीकण्टक क्षतस्य असत्या सर्पदंशता प्रकाशितेति । (१३) अथ तोटकम्
सूत्र ८६]-तोटकं गर्भितं वचः ॥५॥ क्रोध-हर्षादिसम्भूतावेगगर्भितं वचनं तोटयति भिनत्ति हृदयमिति तोटकम् । यथा रामाभ्युदये चतुर्थेऽके
"इन्द्रजित्-तात ! किमिदमनुचितमारब्धं तातेन, यदयमकाण्ड एव कुम्भकर्णः प्रतिवोध्यते । किमत्र न कश्चित् क्षुद्रतापसोपमर्दाय सम्भावितस्तातेन । अपि च
रक्षोवीराः दृढोरःप्रतिफलनदलत्कालदण्डप्रचण्डाः, दोर्दण्डाकाण्डकण्डूविषमनिकषणत्रासितक्ष्माधरेन्द्राः । याताः कामं न नाम स्मृतिपथमपथप्रस्थितेन्द्रानुसारी, स्वर्वासिक्लिष्टदृष्टः कथमहमपि ते विस्मृतो मेघनादः ।।
एतत् क्रोधा दावेग वचनम् । यथा वा रघुविलासे चतुर्थेऽङ्के रावण:
इसमें राजाके प्रेमको परीक्षा लेनेके लिए विदूषकने केतकीके कांटोंके चिह्नोंको झूठमूठ सर्पदंशके रूप में प्रकाशित किया है [अतः यह 'असत्याहरण' का उदाहरण है] । (१३) तोटक
अब तोटक [नामक गर्भसन्धिके तेरहवें अङ्गका निरूपरण करते हैं][सूत्र ८८] [किसी विशेष भावसे] गभित वचन 'तोटक'. (कहलाता है ।५५॥
क्रोध, हर्ष, प्रादिसे उत्पन्न प्रावेग युक्त वचन, हृदयका तोटन अर्थात् भेदन करता है इसलिए 'तोटक' [कहलाता है।
[तोटकका उदाहरण] जैसे रामाभ्युदयमें चतुर्थ अङ्कमें
"इन्द्रजितहे तात् ! आपने यह क्या अनुचित काम प्रारम्भ कर दिया कि बिना बात के ही कुम्भकर्णको जगा रहे हैं। क्या आपने यहां किसी औरको क्षुद्र तापसका उपमर्दन करनेके लिए समर्थ नहीं समझा । पौर--
जिनके पुष्ट वक्षःस्थलोंपर पड़कर कालका दण्ड भी खण्ड-खण्ड हो जाता है इस प्रकारके प्रचण्ड, और भुजदण्डोंमें अचानक उठी हुई खुजलीके निवारण के लिए खुजलाकर जो पर्वतोंको भी हिला डालते हैं इस प्रकारके [शक्तिशाली] राक्षस वीरों की ओर प्रापका ध्यान नहीं गया तो कोई बात नहीं है, किन्तु [अपथप्रस्थित अर्थात् भागते हुए इन्द्रका भी पीछा करने वाले और स्वर्गलोकके रहने वाले जिसको भयभीत होकर देखते है इस प्रकारके मेघनाद को प्राप कैसे भूल गए [जो इस कुम्भकर्णको जगाने लगे] ?
यह [मेघनादका] क्रोधके कारण पावेगमय वचन है। अथवा जैसे रघुविलासमें चतुर्थ अंकमें, रावण
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