Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम् [ का०५८, सू० ६५ तत्प्रत्यभिज्ञाय च स ब्राह्मणः पौरेषु प्रकाशितचौर्यो राजाज्ञया वध्यस्थानं नेतुमारब्धः। तन्मात्रा चागत्य हरिनन्दिने निवेदितम् । हरिनन्दिना च ब्राह्मणरक्षार्थ चौर्यमात्मनोऽङ्गीकृत्य अयशो विसोढमिति ।
अन्ये त्वस्य स्थाने च्छलनमवमाननरूपमाहुः । यथा रामाभ्युदये सीतायाः परित्यागेनावमानं च्छलनम्।
अपरे तु छलनं सम्मोह मिच्छन्ति । यथा वेणीसंहारे षष्ठेऽङ्के"युधिष्ठिरः- [अश्रूणि मुश्चन् चार्वाकमाह]
सर्वथा कथय ब्रह्मन् संक्षेपाद् विस्तरेण वा ।
वत्सम्य किमपि श्रोतुमेतद् दत्तमुरो मया ।। राक्षस:-श्रयताम
तस्मिन कौरव-पार्थयोर्गुरुगदाघोरध्वनी संयुगे। द्रोपदी-[लब्धसंज्ञा] अयि तदो किम ? [अयि ततः किम् ? इति संस्कृतम्] । राक्षस:-[आत्मगतम्] कथं पुनरनया लब्धा संज्ञा । अपहराम्यस्याःप्राणान। [प्रकाशम् ] -
सीरी तत्क्षणमागतश्चिरमभूत तस्याग्रतः संगरः । कञ्चुकी-नूनं तत्कृतोऽत्र कश्चिदपचारो भविष्यति । का उपयोग किए जानेपर उस] को पहिचान कर नगरवासियोंमें चोरीका अारोप घोषित कर राजाकी प्राज्ञासे ब्राह्मरणको वध्य स्थानकी ओर ले जाया जाने लगा। तब ब्राह्मणकी मासाने प्राकर हरिनन्दीसे कहा। हरिनन्दीने ब्राह्मणको रक्षाके लिए स्वयं चोरी करनेके अपराधको स्वीकृत कर अपयशको सहन किया। यह [छादन' नामक अङ्गका उदाहरण है।]
। अन्य लोग इस [छादनके] के स्थानपर अवमान रूप 'छलन' [अङ्ग] को मानते हैं [छादनको अंग नहीं मानते हैं] । जैसे राम भ्युदयमें सीताके परित्यागसे किए गए अपमानको ['छलन' नामक अंग कहते हैं।
अन्य लोग सम्मोहको छलन कहते हैं । जैसे वेणीसंहारके छठे अङ्कमें- "युधिष्ठिर---[रोते हुए चार्वाकसे कहते हैं ] -----
हे ब्रह्मन् ! संक्षेपसे या विस्तारसे जैसे चाहें प्राप कहिए । वत्स [भीम] के किसी भी समाचारको सुननेके लिए मैंने अपना हृदय तैयार कर लिया है ।
राक्षस-अच्छा सुनिए। द्रौपदी-होशमें आकर अच्छा तब फिर क्या हुआ ?
राक्षस-[स्वगत] अच्छा यह तो फिर होशमें आ गई। अभी इसके प्राणोंका प्रपहरण करता हूं। [प्रकाशम् कहता है
उसी समय बलरामजी वहाँ पा गए और उनके सामने बहुत देर तक [भीम तथा दुर्योधनका] युद्ध होता रहा।
कञ्चुकी---निश्चय ही उनके द्वारा किया गया कोई अनिष्ट इसमें उपस्थित होगा।
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