Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
View full book text
________________
का०५६-५७, सू. ६०-६१ ] प्रथमो विवेकः
[ १६१ 'वक्त्राणि हे ! हसत गायत तारतारं, नेत्राणि ! चुम्बत विहस्य च कर्णपालीः । दोर्वल्लयः ! कुरुत ताण्डवडम्बरं च, श्रीरावणं ननु विदेहसुता रिरंसुः॥"
इदं हर्षादावेगगर्भ वचनम् । एतानि गर्भसन्धेस्त्रयोदशाङ्गानि ॥५५।। [४] अथामर्शसन्धेरंगानि व्याख्यातुमुद्दिशति[सूत्र ६०]-द्रवः प्रसंगः सम्फेटोऽपवादश्छादनं द्युतिः ।
खेदो निरोधः संरम्भो भवेयुर्गुणतो नव ॥५६॥ शक्ति-प्ररोचना-दान-व्यवसायास्तु मुख्यतः।।
त्रयोदशांगान्यामर्श द्रवादीनि नव प्रयोजनमपेक्ष्य गौणतया बध्यन्ते । शक्त्यादीनि चत्वारि पुनः प्राधान्येन। (१) अथ द्रवः
[छत्र ६१]-द्रवः पूज्यव्यतिक्रमः ॥५७॥ व्यतिक्रमो मार्गाच्चलनम्। यथा रत्नावल्यां सन्निहितं भर्तारमवगणय्य विदूषकस्य सागरिकायाश्च वासवदत्तया बन्धनमिति ॥५॥
"रावरण-प्ररे [मेरे दश] मुखो ! तुम लोग [प्रसन्न होकर खूब हँसो और गानो । हे नेत्रो ! तुम प्रसन्नतासे [फल-फेल कर] कानोंका चुम्बन करो [कानों तक फैल जाओ] । हे भुजवल्लियो ! तुम खूब नाहो क्योंकि प्राज वैदेही रावणके साथ रमण करना चाहती है।"
यह [रावरणका] हर्षसे आवेगमय वचन है। ये गर्भसन्धिके तेरह अङ्ग हुए ॥५॥ [४] भामर्श सन्धिके तेरह अङ्गअब मामर्श सन्धिके अङ्गोंको व्याख्या करनेके लिए उनके नाम गिनाते हैं--
[सूत्र ८६]-१ द्रव, २ प्रसंग, ३ सम्फेट, ४ अपवाद, ५ छादन, ६ द्युति, ७ खेद, ८ निरोष, और ६ संरम्भ ये नौ [विमर्शसन्धिके] गौण अङ्ग हैं ।५६।।
[सूत्र ८९-१० शक्ति, ११ प्ररोचना, १२ दान और १३ व्यवसाय ये चार मुख्य मङ्ग है । इस प्रकार भामर्श सन्धिमें तेरह अंग होते हैं ।
द्रव मावि नौ अंग प्रयोजनके अनुसार गौण रूपसे निबट किए जाते हैं, मौर शक्ति मावि भार मुख्य रूपसे निबद्ध होते हैं।
(१) प्रम 'द्रव' [नामक विमर्शसन्धिके प्रथम अङ्गका निरूपण करते हैं][सूत्र ९०]-पूज्योंको व्यतिक्रम करना 'व' [कहलाता है।
व्यतिक्रम अर्थात् मार्गसे हट जाना। जैसे रत्नावलीमें सामने उपस्थित भर्ता [बत्सराव उदयन ] को उपेक्षा करके वासवदत्ताके द्वारा विदूषक तथा सागरिकाको बंधवाना १५७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org