Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
View full book text
________________
१३० ]
(४) अथ सान्त्वनम् -
नाट्यदर्पणम्
[ सूत्र ६६ ] - सान्त्वनं साम क्रुद्धस्यानुकूलम् । यथा रामाभ्युदये द्वितीयेऽङ्केमारीचः - नाय मनुवृत्तिवचसामवसरः । परिस्फुटं विज्ञाप्यते--- दाराणां व्रतिनां च रक्षणविधौ वीरोनुयोज्यानुज, वीराणां खर-दूषण-त्रिशिरसा मेको वधं यो व्यधात् । तस्याखण्डिततेजसः कुलजने न्यक्कार आविष्कृतः, कुण्ठः सङ्गरदुर्मदस्य भवतः स्याच्चन्द्रहासोऽप्यसिः ॥ रावणः - आः प्रतिपक्ष पक्षपातिन क्षुद्र राक्षसापसद किं बहुना - तवैव रुधिराम्बुभिः क्षतकठोर कण्ठस्रुतैः, रिपुस्तुतिभवो मम प्रशममेतु क्रोधानलः | सुरद्विपशिर:- स्थलीदलनदष्टमुक्ताफलः, स्वसुः परिभवोचितं पुनरसौ विधास्यत्यसिः ॥ (इति खङ्गमाकर्षति ।)
(४) सान्त्वन
समय रानी सुतारा और पुत्रको भी साथ चलने के लिए उद्यत देखकर जिस दुःख श्रीर सङ्कट में पड़ गए थे उसका चित्रण किया गया है। इस लिए यह प्रतिमुखसन्धि के 'रोध' नामक तृतीय अङ्गका उदाहरण है । 'रोध' का लक्षण 'प्रति' है । अर्थात् खेद या व्यसन, दुःख, सङ्कट को रोध कहा गया है ।
[ का० ४८, सू० ६६
अब 'सान्त्वन' [ नामक प्रतिमुख संधिके चतुर्थ अङ्गका लक्षण करते हैं ]
[ सूत्र ६६ ] - शान्ति वचन [का नाम ] ' सान्त्वन' है ।
क्रुद्धको मनाना [ साम कहलाता है] जैसे रामाभ्युदयमें द्वितीय श्रङ्कमें
" मारीच -- यह खुशामद करनेका अवसर नहीं है । [ मैं तो ] स्पष्ट रूप से बतलाए देता हूँ कि -
जिस वीर [ रामचन्द्र ] ने स्त्री [ सीता] और तपस्वियोंकी रक्षाका भार छोटे भाई [ लक्ष्मरण] को सौंपकर खर दूषरण और त्रिशिरा आदि वीरोंका अकेले ही वध कर डाला था । उसकी पत्नीके अपमान या मारनेके लिए निकला हुआ तुम्हारा चंद्रहास नामक खङ्ग भी कुण्ठित हो जायगा ।
Jain Education International
रावण -- श्ररे शत्रुके पक्षपाती नीच, दुष्ट राक्षस अधिक क्या कहूँ --
[ रामको मारनेकी बात तो जाने दे पहिले] तेरे ही कठोर कण्ठसे निकले हुए रुधिर जलसे [तेरे द्वारा की गई ] शत्रुकी स्तुतिसे उत्पन्न मेरा क्रोधानल शांत हो ले। देवतानोंके हाथी [ ऐरावत ] के गण्डस्थलके विदारणके कारण जिसमें मुक्ताफल लग गए हैं इस प्रकारको [ मेरी] यह तलवार, बहिन [ शूर्पणखा ] के अपमानके अनुरूप [ रामचंद्र के वध रूप कार्य को] बादको करेगी [श्रर्थात् पहिले तुझ मारीचको, जो शत्रु की स्तुति कर रहा है समाप्त कर लूँ तब फिर रामचंद्र को मारनेका कार्य बादको कर लूँगा ] ।
ऐसा कहकर [रावर मारीचके मारनेके लिए अपनी] तलवारको खींचता है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org