Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० ४६, सू० ६८ ] प्रथमो विवेकः
[ १३३ (६) अथ नर्म--
[सूत्र ६८]-क्रीडायै हसनं नर्म यथा रत्नावल्याम
"विदूषकः-- [कर्णं दत्वा ससम्भ्रमं राजानं हस्ते गृहीत्वा] भो वयस्स ! पला. यम्ह । एदस्मिं लकुचपायवे कि पि महाभदं परिवसदि। यदि मे न पत्तियसि ता अम्गदो भविय सयं य्येव श्रायन्नेहि ।
[भो वयस्य ! पलायामहे । एतस्मिन् लकुचपादपेकिमपि महाभूतं परिवति । यदि मां न प्रत्येषि तदातो भूत्वा स्वयमेवाकर्णय । इति संस्कृतम] । राजा--[आकये क्यस्य सारिकेयम् । इति ।"
तथा“विदूषक :-भो मा पंडिच्चगठवमुव्वहह । एदं देह वक्खाणइस्सं जा एसा आलिहिदा, सा करणगा दसणीया य ।
[भो मा पाण्डित्यगर्वमुबह । इद देवाय व्याख्यास्यामि या एषाऽऽलिखिता सा कन्यका दर्शनीया च ! इति संस्कृतम्] | राजा-वयस्य यद्येवं अवहितैः श्रोतव्यम् । अस्त्यवकाशो न कुतूहलस्य ।'
तथा-- "सुसङ्गता--सहि जस्स कए तुवं आगदा सो अयं पुरदो चिट्ठदि ।
[सखि यस्य कृते त्वमागता सोऽयं पुरतस्तिष्ठति । इति संस्कृतम्] । (६) नर्म
इस प्रकार यहाँ तक प्रतिमुख-सन्धिके पांच अङ्गोंका वर्णन हो गया। अब प्रागे प्रतिमुख-सन्धिके छठे अङ्ग 'नमं' का वर्णन प्रारम्भ करते हैं।
अब 'नर्म' [नामक छठे अंगका लक्षण करते हैं][सूत्र ६८] ---मनोरञ्जन [क्रोडायै] केलिए हास्य करना 'नर्म' [कहलाता है। जैसे रत्नावलीमें
विदूषक-[कान लगाकर सुनते हुए और भयके मारे राजाका हाथ पकड़कर विदूषक राजासे कहता है कि- हे मित्र, चलो यहाँसे भाग चलें क्योंकि इस कटहलके पेड़पर कोई भयङ्कर महाभूत रहता है। यदि तुम मेरे ऊपर विश्वास नहीं करते हो तो अपने आप मागे बढ़कर सुन लो [देखो इसपर भूत बोल रहा है कि नहीं] ।
राजा -[सुनकर अरे मित्र ! यह तो मैना बोल रही] [भूत कहाँ] है।
यहाँ विदूषकका वचन मनोरञ्जन मात्रके लिए है इसलिए यह 'नर्म' या हास्य मजाक का उदाहरण है । रत्नावलीसे इसी प्रकारका एक और उदाहरण प्रागे देते हैं
विदूषक-अरे मित्र, पाडित्यका गर्व मत करो। मैं तो इसकी ऐसी व्याख्या करता हूँ कि यह जो चित्र अङ्कित है वह कन्या है और वर्शनीया है।
राजा-यदि ऐसी बात है तो तनिक सावधान होकर सुनना चाहिए [कि यह क्या कहती है । क्योंकि इस कन्याकेलिए] हमें उत्सुकता होना स्वाभाविक है।
सुसङ्गता--सखि ! जिसके लिए तुम पाई हो वह सामने ही उपस्थित है।
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