Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम्
का० ४६, सू० ७१ - "सखी--जइ एवं ता कहेहिं जेण म्हे पडिहावयंतीउ पसंसाए देवदाणं संकित्तणेण दुवादिपरिग्रहेण पडिहणिस्सामो!"
[यद्यावं तदा कथय येन वयं प्रतिष्ठापयन्त्यः प्रशंसया देवतानां संकीर्तनेन दुर्वादिपरिग्रहेण प्रतिहनिष्यामः । इति संस्कृतम्] ।
पुनः स्वावसरे ___ "भानुमती--[अर्घपात्रं गृहीत्वा सूर्याभिमुखं स्थित्वा] भयवं अम्बरमहासरेक्कसहस्सवत्त ! दिसाबहुमुखमंडण कुंकुमविसेसय ! सयसभुवणरयणप्पईव ! ज्ज इह सिविणयदसणे किंचि अच्चाहिद,तं भयवदो पणामेण सभादुणो अय्यउत्तस्स कुसल परिणाम भोदु ति।"
[भगवन् ! अम्बरमहासरैकसहस्रपत्र ! दिग्वधूमुखमण्डलकुकुम विशेषक ! सकलभुवनरत्नप्रदीप! अद्यह स्वप्नदर्शने यत् किञ्चिदत्याहितं, तद् भगवतः प्रणामेन सभ्रातुरार्यपुत्रस्य कुशलपरिणामं भवतु।" इति संकृतम् ।
अत्र दुःस्वप्नोद्भुताया अरतेनिर्ग्रहः । इति । (६) अथ पुष्पम्
[सूत्र ७१]-पुष्पं वाक्यं विशेषवत् ।। ४६ ॥ पूर्व स्वयमन्येन वा केनचित् प्रयुक्तं वचनमपेक्ष्य यदु विशेषयुक्तं वचनं प्रयुज्यते तेन अन्येन वा, तत् पूर्वस्माद्विशेषवत् । तब वाक्यं पुष्पमिव पुष्पम् । केशरचनायाः पुष्पमिव पूर्ववाक्यालंकारकारित्वात् । यथा 'विलक्षदुर्योधने'
"सखी-यदि ऐसी बात है तो कहो, जिससे हम लोग प्रतिष्ठापना, प्रशंसा, देवतामोंके संकीर्तन तथा दूर्वादिके पहरणके द्वारा [उस दुःस्वप्न] का प्रतिविधान करें।
वेणीसंहारके द्वितीय प्रङ्को भानुमतीके मुखसे दु स्वप्नकी बात सुनकर उसकी सखी उस परतिके शमनकी चर्चा कर रही है । प्रतः यह प्रति निग्रहका उदाहरण है । भागे स्वयं भानुमती द्वारा किए जानेवाले परति-निग्रहका उल्लेख करते हैं।
फिर अपना अवसर प्रानेपर __ "भानुमती-[अर्धपात्र लेकर और सूर्यके सामने खड़े होकर] हे भगवन् ! माकाश रूप महासरोवरके अद्वितीय कमल ! दिग्वधूके मुख-मण्डलके कुंकुम-बिन्दु ! और समस्त भुवनोंके [प्रकाशित करनेवाले] रत्नदीप ! माज स्वप्न-दर्शनमें जो-कुछ महाभय [प्रत्याहितं महाभौतिः] उपस्थित हुना वह आपको प्रणाम करनेसे, भाइयों सहित पार्यपुत्रके लिए कुशल परिणामका जनक हो।
इसमें दुःस्वप्नसे उत्पन्न प्ररतिका निग्रह [स्वयं भानुमती कर रही है । प्रतः शमनका उदाहरण है। (६) पुष्प
अब 'पुष्प' [नामक प्रतिमुखसंधिके नवम अंगका लक्षण करते हैं][सूत्र ७१]-विशेषतासे युक्त वाक्य 'पुष्प' [नामक अंग होता है
पहिले स्वयं ही, अथवा किसी दूसरेके द्वारा कहे.गए वाक्यको अपेक्षासे जो विशेषता युक्त बच्चन [बादको] उसोके द्वारा अथवा अन्य [वक्ता] के द्वारा प्रयुक्त किया जाता है। पूर्व
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